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पहले हमारे प्रधानमंत्री महोदय साल में बच्चों से मिलने का एक दिन रखते थे और आज प्रधानमंत्री हर वक़्त देश के बच्चों को उपलब्ध हैं। अब दौर आ गया है बच्चों को उनके पैरों पर खड़े कर काबिल बनाने का और यह जिम्मा प्रधानमंत्री महोदय ने लिया है। तभी तो एक छात्र प्रधानमंत्री जी से सवाल पूछ सकता है कि ”मोदी सर ,क्या आपको भी परीक्षा का तनाव हुआ था?”
विचारणीय स्थिति है कि वह समस्या जो बच्चे स्वयं साल भर पढाई कर सुलझा सकते हैं, वह समस्या जो बच्चों के शिक्षक उन्हें पढ़ाकर और उनसे वार्तालाप कर मिनटों में हल कर सकते हैं और वह समस्या जो बच्चों के माँ-बाप उनके कैरियर को अपनी प्रतिष्ठा का विषय न बनाकर सेकेंडों में संभाल सकते हैं, उसके लिए प्रधानमंत्री तक क्यों पहुंचा जा रहा है।
इसके जिम्मेदार सबसे पहले हमारे बच्चे हैं, दूसरे नंबर पर शिक्षक और तीसरे नंबर पर हमारे माता पिता हैं, क्योंकि आज के बच्चे पढाई को लेकर उतने गंभीर नहीं हैं, जितना उन्हें होना चाहिए। आज वे फेसबुक पर चैट और व्हाट्सप्प पर ग्रुप बनाने में ही ज्यादा मशगूल रहते हैं। परीक्षा के लिए केवल तभी सोचते हैं जब परीक्षा सिर पर आ जाती है।
दूसरे रहे हमारे शिक्षक जिनके लिए पढ़ाना केवल एक व्यवसाय बनकर रह गया है। शिक्षा के क्षेत्र में आज चंद नाम ही होंगे जो सेवा की सोचकर आते हों, अधिकांश यहाँ केवल आकर्षक वेतन देखकर ही अपना कैरियर बनाते हैं। रहे हमारे माता-पिता जो खुद हासिल नहीं कर पाए, वह अपने बच्चों से हासिल करने की तमन्ना। जो हासिल कर चुके उन्हें केवल अपनी प्रतिष्ठा बनाये रखने की तमन्ना, उनके बच्चों की इच्छा को कोई स्थान लेने ही नहीं देती। उनकी इच्छाओं को पूरा करने की चक्की में ही उन बच्चों को पीसकर रख देती है। हमें नहीं लगता कि इतनी छोटी-छोटी बातों को लेकर प्रधानमंत्री को आम जनता से जुड़ना चाहिए।
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