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पुनर्विवाह के बाद विधवा विधवा कहाँ ?

! मेरी अभिव्यक्ति !
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आज सुबह के समाचार पत्र में एक समाचार था कि ”पुनर्विवाह के बाद भी विधवा पूर्व पति की कानूनी वारिस ” ये निर्णय महिला अधिकारों पर पंजाब व् हरियाणा हाईकोर्ट का था ,अहम् फैसला है किन्तु क्या सही है ? क्या एक महिला जो कि दुर्भाग्य से विधवा हो गयी थी और समाज के प्रगतिशील रुख के कारण दोबारा सुहागन हो गयी है उसका कोई हक़ उस पति की संपत्ति में रहना जिससे विधि के विधान ने उसे अलग कर एक नए पति के बंधन में बांध दिया है ,जिस परिवार के प्रति अब उसका कोई दायित्व नहीं रह गया है और जिसकी उसे अब कोई ज़रुरत भी नहीं है उस परिवार की संपत्ति में उसका ये दखल क्या उसकी सशक्तता के लिए आवश्यक कहा जा सकता है ?

महिला अधिकारों की बातें करना सही है ,उसकी सशक्तता के लिए आवाज़ बुलंद करना सही है ,उसकी सुरक्षा के लिए कानूनी प्रावधान किया जाना उचित है किन्तु पुनर्विवाह के बाद भी पूर्व पति की संपत्ति में उसका हक़ किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि जो पति होता है वह किसी का बेटा और भाई भी होता है किन्तु इस तरह से उनके साथ हो रहे अन्याय को रोकना तो रोकना उसके सम्बन्ध में सोचना भी गुनाह हो जायेगा क्योंकि पत्नी या विधवा ये हिन्दू उत्तराधिकार कानून के तहत वर्ग-एक की उत्तराधिकारी हैं और ऐसे में पति में जो संपत्ति उसके विवाह के समय निहित हो चुकी है वह तो उसे मिलने से कोई रोक भी नहीं सकता किन्तु ऐसा मामला जिसमे उसके पति का किसी दुर्घटना में निधन हो जाता है वहां मुआवजे के रूप में संपत्ति का मिलना तब तो सही भी कहा जायेगा जब वह विधवा ही रहकर उस परिवार से जुडी रही हो जिसका कि उसका पति था किन्तु उस स्थिति में जिसमे वह मुआवजा मिलने से पूर्व ही किसी और की सुहागन हो चुकी हो तब ये उस परिवार के साथ तो अन्याय है जिसका कि वह बेटा या भाई था क्योंकि ऐसे में उनका भी तो सहारा छिना था किन्तु चूँकि वे उत्तराधिकार में पत्नी-विधवा से नीचे हैं इसलिए उन्हें हर हाल में बेसहारा ही रहना होगा .

पुनर्विवाह  के बाद स्थिति पलट जाती है .विधवा न तो विधवा रहती है और न ही उसका पूर्व पति के परिवार से कोई मतलब रहता है ऐसे में यदि उसके पूर्व पति से कोई संतान है तब तो उसका पूर्व पति की संपत्ति का वारिस होना न्यायपूर्ण कहा जायेगा क्योंकि दूसरे परिवार में संतान को वह हक़ मिलना मुश्किल ही रहता है जो हक़ उसका अपने पिता के यहाँ रहता है किन्तु महिला की स्थिति वहां भी पत्नी की ही रहती है और वह वहां भी उसी तरह हक़दार रहती है जैसे अपने पहले पति के यहाँ थी ,ऐसे में जैसे कि कानून में विधवा पुत्र-वधु व् विधवा पौत्र-वधु के पुनर्विवाह होने पर उनके पूर्व पति के परिवार से उनका हक़ ख़त्म होने का प्रावधान हिन्दू उत्तराधिकार कानून में है ऐसे ही मृतक की विधवा के सम्बन्ध में भी नवीन प्रावधान किया जाना चाहिए जिसमे जैसे कि नवीन परिवार में जाने पर पूर्व पति के परिवार से उसके दायित्व समाप्त मान लिए जाते हैं ऐसे ही उसके अधिकार भी पूर्व पति के परिवार से समाप्त मान लिए जाने चाहिए .

शालिनी कौशिक

[ कौशल ]

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