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वसीयत और मरणोपरांत वसीयत

! मेरी अभिव्यक्ति !
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वसीयत एक ऐसा अभिलेख जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति की व्यवस्था करता है .भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 3  में वसीयत अर्थात इच्छापत्र की परिभाषा इस प्रकार है –

”वसीयत का अर्थ वसीयतकर्ता का अपनी संपत्ति के सम्बन्ध में अपने अभिप्राय का कानूनी प्रख्यापन है जिसे वह अपनी मृत्यु के पश्चात् लागू किये जाने की इच्छा रखता है .”

वसीयत वह अभिलेख है जिसे आदमी अपने जीवन में कई बार कर सकता है किन्तु वह लागू तभी होती है जब उसे करने वाला आदमी मर जाता है .एक आदमी अपनी संपत्ति की कई बार वसीयत कर सकता है किन्तु जो वसीयत उसके जीवन में सबसे बाद की होती है वही महत्वपूर्ण होती है.

वसीयत का पंजीकरण ज़रूरी नहीं है किन्तु वसीयत की प्रमाणिकता को बढ़ाने के लिए इसका रजिस्ट्रेशन करा लिया जाता है और रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1908  की धारा 27  के अनुसार –

” विल एतस्मिन पश्चात् उपबंधित रीति से किसी भी समय रजिस्ट्रीकरण के लिए उपस्थापित या निक्षिप्त की जा सकेगी .”

इच्छापत्र सादे कागज पर लिखा जाता है और इसके लिए स्टाम्प नहीं लगता है क्योंकि ये स्टाम्प से मुक्त होता है किन्तु आजकल स्टाम्प की महत्ता इतनी बढ़ गयी है कि कहीं भी अगर बड़ों के स्थान पर अपना नाम चढ़वाना हो तो वहां स्टाम्प युक्त कागज को ही पक्के सबूत के रूप में लिया जाता है इसलिए सावधानी बरतते हुए वसीयतकर्ता अपने प्रतिनिधियों को आगे की परेशानियों से बचाने के लिए स्टाम्प का ही प्रयोग करते हैं .

वसीयत लागू ही व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् होती है और इसके लिए एक प्रावधान अधिनियम में ऐसा भी है जिसके जरिये वसीयत वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात् भी पंजीकृत कराई जा सकती है .

रजिस्ट्रेशन अधिनियम की धारा 41  के अनुसार इच्छापत्र वसीयतकर्ता की मृत्योपरान्त भी  पंजीकृत कराया जा सकता है .धारा 41  के अनुसार –

”[1 ] वसीयतकर्ता या दाता द्वारा रजिस्ट्रीकरण करने के लिए उपस्थापित की गयी विल या  दत्तकग्रहण प्राधिकार ,किसी भी अन्य दस्तावेज के रजिस्ट्रीकरण  की रीति ,को वैसी ही रीति से रजिस्ट्रीकृत किया जायेगा .

[2 ] उस विल या दत्तकग्रहण प्राधिकार का ,जो उसे उपस्थापित करने के हक़दार किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रजिस्ट्रीकरण के लिए उपस्थापित किया जाये उस दशा में रजिस्ट्रीकरण किया जा सकेगा जिसमे रजिस्ट्रीकर्ता ऑफिसर का समाधान हो जाये कि –

[क] विल या प्राधिकार ,यथास्थिति ,वसीयतकर्ता या दाता द्वारा निष्पादित किया गया था ;

[ख] वसीयतकर्ता या दाता मर गया है  ;तथा

[ग] विल या प्राधिकार को उपस्थापित करने वाला व्यक्ति उसे उपस्थापित करने का धारा 40  के अधीन हक़दार  है .

और धारा 40  में रजिस्ट्रीकरण अधिनियम कहता है –

[1 ] वसीयतकर्ता या उसकी मृत्यु के पश्चात् विल के अधीन निष्पादक के रूप में या अन्यथा दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति उसे रजिस्ट्रीकरण के लिए किसी भी रजिस्ट्रार या उपरजिस्ट्रार के समक्ष उपस्थापित कर सकेगा .

[2 ] किसी भी दत्तक प्राधिकार का दाता या उसकी मृत्यु के पश्चात् उस प्राधिकार का आदाता या  दत्तक पुत्र उसे रजिस्ट्रीकरण के लिए किसी भी रजिस्ट्रार या उपरजिस्ट्रार के समक्ष उपस्थापित कर सकेगा .

और मृत्योपरान्त हुई इस प्रकार पंजीकृत वसीयत के बारे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का कृष्ण कुमार बनाम कोर्ट ऑफ़ डिस्टिक्ट रजिस्ट्रार ,एडिशनल  डिस्ट्रिक्ट  मजिस्ट्रेट [ऍफ़.एन्ड आर.] रायबरेली 2010 [2 ]जे .सी.एल.आर.612 [इला.] [ल .पी.]

”वसीयत के वसीयतकर्ता के विधिक प्रतिनिधिगण किसी वसीयत के पंजीकरण के विरूद्ध उसे मिथ्या तथा जाली होने का अभिकथन करते हुए आपत्ति दाखिल करने के लिए सक्षम नहीं हैं .”

इस प्रकार वसीयत का रजिस्ट्रेशन उसके विरोधियों के मुख बंद कर देता है और जिसके हक़ में वह की जाती है उसे निर्बाध रूप से हक़दार घोषित करता है .बस ध्यान यह रखा जाये कि वसीयत दो गवाहों की उपस्थिति में की गयी हो और उन गवाहों का उस संपत्ति में कोई हित न हो और मृत्योपरांत वसीयत वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद तीन माह के अंदर रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत कर दी गयी हो.

मृत्योपरांत वसीयत का पंजीकरण भी उसके विरोधियों  के मुख इसलिए बंद कर देता है क्योंकि जब यह रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तब इसे एक बंद लिफाफे में ही रखा जाता है और वसीयतकर्ता के सभी विधिक प्रतिनिधियों को समन भेजकर आपत्ति दाखिल करने का अवसर दिया जाता है और आपत्ति दाखिल करने का समय समाप्त होने के पश्चात् ही वसीयत रजिस्ट्रीकृत की जाती है .इसलिए वसीयत करें और वसीयतकर्ता व् वसीयत आदाता इन तथ्यों का ध्यान  रखें  .

शालिनी कौशिक

[कानूनी ज्ञान ]

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