Menu
blogid : 12172 postid : 1366434

मृतक का आश्रित :अनुकम्पा नियुक्ति

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
  • 791 Posts
  • 2130 Comments

familyअभी लगभग १ वर्ष पूर्व हमारे क्षेत्र के एक व्यक्ति का देहांत हो गया .मृतक सरकारी कर्मचारी था और मरते वक्त उसकी नौकरी की अवधि शेष थी इसलिए मृतक आश्रित का प्रश्न उठा .यूँ तो ,निश्चित रूप से उसकी पत्नी आश्रित की अनुकम्पा पाने की हक़दार थी लेकिन क्योंकि मृतक ने पहले ही वह नौकरी अपने पिता के मृतक आश्रित के रूप में प्राप्त की थी इसलिए मृतक की बहन भी मृतक आश्रित के रूप में आगे आ गयी .मृतक की बहन के मृतक आश्रित के रूप में आगे आने का एक कारण और भी था और वह था इलाहाबाद हाईकोर्ट का ११ फरवरी २०१५ को दिया गया फैसला जिसमे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना था ”परिवार की परिभाषा में भाई-बहन-विधवा माँ भी “.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित अनुकम्पा नियुक्ति 1974 की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि वर्ष २००१ में हुए संशोधन के बाद ”परिवार” का दायरा बढ़ा दिया गया है .इसके अनुसार यदि मृत कर्मचारी अविवाहित था और भाई-बहन व् विधवा माँ उस पर आश्रित थे तो वह परिवार की परिभाषा में आते हैं .वह अनुकम्पा आधार पर नियुक्ति पाने के हक़दार हैं .
मुख्य न्यायाधीश डॉ.डी.वाई .चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार की विशेष अपील को ख़ारिज करते हुए यह व्यवस्था दी.इसलिए इस मामले में गौर करने वाली बात यह है कि इसमें मृतक अविवाहित था .यह प्रकरण वर्ष २००६ में नियुक्त पुलिस कॉन्स्टेबल के भाई विनय यादव के मामले में सामने आया .वर्ष २००६ में प्रदेश सरकार ने १८,७०० पुलिस सिपाहियों की भर्ती की .बाद में इस भर्ती को धांधली के आधार पर २००७ में बसपा सरकार ने रद्द कर दिया .अभ्यर्थी मामले को लेकर हाईकोर्ट चले गए .हाईकोर्ट का फैसला आने से पूर्व ही विनय यादव के भाई की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी .वह अविवाहित था .विनय यादव ने अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति की मांग की लेकिन सरकार ने उसका प्रार्थनापत्र रद्द कर दिया .प्रदेश सरकार ने भाई को मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति का हक़दार नहीं माना .दलील दी कि मृतक आश्रित नियमावली २०११ में संशोधित की गयी ,उसके बाद भाई को परिवार का हिस्सा माना गया .याची का मामला २००७ का था इसलिए यह संशोधन उस पर लागू नहीं होगा .खंडपीठ ने सरकार की दलील को नकारते हुए साफ किया कि वर्ष २००१ के संशोधन द्वारा परिवार का दायरा बढ़ाया गया ,इस वजह से याची परिवार की परिभाषा के अंतर्गत आता है .२०११ के संशोधन का परिवार के मामले से कोई सम्बन्ध नहीं है .
इस मामले में तो हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भाई को मृतक आश्रित मान लिया क्योंकि पहले तो मृतक अविवाहित था ,दुसरे उसकी माँ-बहन-भाई उस पर आश्रित थे किन्तु अपने क्षेत्र के जिस मृतक का जिक्र मैंने किया उसमे मृतक भी विवाहित था और उसकी बहन भी ,ऐसे में बहन भाई के आश्रित नहीं थी और न ही उसका परिवार थी इसलिए उसकी बहन को मृतक आश्रित के रूप में नौकरी नहीं मिली और मृतक की पत्नी मृतक आश्रित की अनुकम्पा के आधार पर अब उस सरकारी विभाग में नौकरी कर रही है .

शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply