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मर्द की एक हकीकत

! मेरी अभिव्यक्ति !
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”प्रमोशन के लिए बीवी को करता था अफसरों को पेश.” समाचार पढ़ा, पढ़ते ही दिल और दिमाग विषाद और क्रोध से भर गया. जहाँ पत्नी का किसी और पुरुष से जरा सा मुस्कुराकर बात करना ही पति के ह्रदय में ज्वाला सी भर देता है, क्या वहां इस तरह की घटना पर यकीन किया जा सकता है? किन्तु चाहे अनचाहे यकीन करना पड़ता है, क्योंकि यह कोई पहली घटना नहीं है, अपितु सदियों से ये घटनाएँ पुरुष के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती रही हैं. स्वार्थ और पुरुष चोली दामन के साथी कहे जा सकते हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए पुरुषों ने नारी का नीचता की हद तक इस्तेमाल किया है.


प्रमोशन के लिए ये हथकंडे पुरानी बात हैं, किन्तु अब आये दिन अपने आसपास के वातावरण में ये सच्चाई दिख ही जाती है. पत्नी के माध्यम से अफसरों से मेल-जोल ये कहकर कि ”साहब मेरी पत्नी आपसे मिलना चाहती है”, ”मेरी बेटी से मिलिए.”


ये घिनौने कृत्य तो सबकी नज़र में हैं ही साथ ही बेटी बेचकर पैसा कमाना भी दम्भी पुरुषों का ही कारनामा है. बेटी को शादी के बाद मायके ले आना और वापस ससुराल न भेजना, जबकि उसे वहां कोई दिक्कत नहीं, संशय उत्पन्न करने को काफी है. उस पर पति का यह आक्षेप कि ये अपनी बेटी को कहीं बेचना चाहते हैं, जबकि मैने इनके कहने पर अपने घर से अलग घर भी ले लिया था, तब भी ये अपनी बेटी को नहीं भेज रहे हैं, इसी संशय को संपुष्ट करता है. ये कारनामा हमारी कई फिल्में दिखा भी चुकी हैं. तेजाब फिल्म में अनुपम खेर एक ऐसे ही बाप की भूमिका निभा रहे हैं, जो अपनी बेटी का किसी से सौदा करता है.


जो पुरुष स्त्री को संपत्ति में हिस्सा देना ही नहीं चाहता, आज वही स्टाम्प शुल्क में कमी को लेकर संपत्ति पत्नी के नाम खरीद रहा है. पता है कि मेरे कब्जे में रह रही यह अबला नारी मेरे खिलाफ नहीं जा सकती, तो जहाँ पैसे बचा सकता हूँ क्यूं न बचाऊँ, इस तरफ सरकारी नारी सशक्तिकरण को चूना लगा रहा है. जिसके घर में पत्नी बेटी की हैसियत गूंगी गुड़िया से अधिक नहीं होती, वही सीटों के आरक्षण के कारण स्थानीय सत्ता में अपना वजूद कायम रखने के लिए पत्नी को उम्मीदवार बना रहा है. जिस पुरुष के दंभ को मात्र इतने से कि पत्नी की कमाई खा रहा है, गहरी चोट लगती है, वह स्वयं को- ”जी मैं उन्हीं का पति हूँ जो यहाँ चैयरमेन के पद के लिए खड़ी हुई थींं,” या फिर अख़बारों में स्वयं के फोटो के नीचे अपने नाम के साथ सभासद पति लिखवाते शर्म का लेशमात्र भी नहीं छूता.


पुरुष के लिए नारी मात्र एक जायदाद की हैसियत रखती है और वह उसके माध्यम से अपने जिन-जिन स्वार्थों की पूर्ति कर सकता है, करता है. सरकारी योजनाओं के पैसे खाने के लिए अपने रहते पत्नी को ”विधवा” तक लिखवाने में इसे गुरेज नहीं. संपत्ति मामले सुलझाने के लिए घोर परंपरावादी माहौल में पत्नी को आगे बढ़ा बात करवाने में शर्म नहीं. बीवी के किसी और के साथ घर से बार-बार भाग जाने पर जो व्यक्ति पुलिस में रिपोर्ट लिखवाता फिरता है, वही उसके लौट आने पर भी उसे रखता है और उसे कोई शक भी नहीं होता, क्योंकि वह तो पहले से ही जानता है कि वह घर से भागी है, बल्कि उसके घर आने पर उसे और अधिक खुश रखने के प्रयत्न करता है. वह भी केवल यूँ कि अपने जिस काम से वह कमाई कर रही है, वह दूसरों के हाथों में क्यों दे, मुझे दे, मेरे लिए करे, मेरी रोटी माध्यम बने.


पुरुष की एक सच्चाई यह भी है. कहने को तो यह कहा जायेगा कि ये बहुत ही निम्न, प्रगति से कोसों दूर जनजातियों में ही होता है, जबकि ऐसा नहीं है. ऑनर किलिंग जैसे मुद्दे उन्हीं जातियों में ज्यादा दिखाई देंगे, क्योंकि आज के बहुत से माॅडर्न परिवारों ने इसे आधुनिकता की दिशा में बढ़ते क़दमों के रूप में स्वीकार कर लिया है. किन्तु वे लोग अभी इस प्रवृत्ति को स्वीकारने में सहज नहीं होते और इसलिए उन्हें गिरा हुआ साबित कर दिया जाता है. क्योंकि वे आधुनिकता की इन प्रवृत्तियों को गन्दी मानते हैं. किन्तु यहाँ मैं जिस पुरुष की बात कह रही हूँ वे आज के सभ्यों में शामिल हैं. हाथ जोड़कर नमस्कार करना, स्वयं का सभ्य स्वरूप बनाकर रखना, शालीन, शाही कपड़ पहनना और जितने भी स्वांग रच वे स्वयं को आज की हाई सोसाइटी का साबित कर सकते हैं, करते हैं. मगर इस सबके पीछे का सच ये है कि वे शानो-शौकत बनाये रखने के लिए अपनी पत्नी को आगे कर दूसरे पुरुषों को लूटने का काम करते हैं. इसलिए ये भी है आज के मर्द की एक हकीकत.

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