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गौतम से पहले मुनेश को सलाम

! मेरी अभिव्यक्ति !
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Gautam Panwar


”दरों दीवार पे हसरत से नज़र रखते हैं,

खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं.”


कह एलम का नौजवान गौतम पंवार भी अपने देश के लिए शहीद हो गया और नाम रोशन कर गया न केवल अपने छोटे से कस्‍बे एलम का, बल्कि पूरे प्रदेश का जहाँ से कोई भी अब ये नहीं कह सकता कि यहाँ की मिट्टी में केवल नेता ही जन्म लेते हैं. गौतम की निपुणता के मुरीद थे अफसर. एक युवा बहादुर नौजवान का इस तरह चले जाना बहुत दुखद है और सबसे ज्यादा उस माँ के लिए, जो अपना जीवन अपने बच्चों के लिए ही कुर्बान कर देती है.


जानती हूँ मेरी पोस्ट का शीर्षक सबको अजीब लगेगा और कुछ को तो गुस्सा भी आ जायेगा, किन्तु मैं यहाँ गौतम से भी ज्यादा बड़ी शहादत देख रही हूँ मुनेश की जो सौभाग्य से गौतम के ही कहूँगी, माँ हैं. समाचार पत्र से ही पता लगा कि मुनेश देवी के पति तो नौकरी के कारण घर से बाहर ही रहते थे. मुनेश देवी ने ही अपने तीनों बच्चों में वो प्रेरणा उत्पन्न की कि वे देश सेवा के योग्य बन सके.


माँ का रिश्ता होता ही ऐसा है जो अपने बारे में कुछ नहीं सोचता. उसके मन में चौबीस घंटे अपने बच्चे की चिंताएं हावी रहती हैं. ऐसे में अपने लाल का यूँ बिछड़ जाना कि अब कभी नहीं मिलेगा, सोचना भी ह्रदय विदारक है, फिर यहाँ तो ये हो गया. पर हम जानते हैं जो माँ अपने एक बेटे के गम में डूबी हुई भी हो, वह अपने और बच्चों की बेहतरी के लिए अपने ह्रदय पर पत्थर रख ही लेती है और यही अब मुनेश को भी करना है.


अर्जुन और वैशाली भले ही सेना में हों, पुलिस में हों, लेकिन मुनेश के बच्चे हैं और इनके लिए माँ अपने फ़र्ज़ को निभाएगी, हमेशा से निभाती आयी है. क्योंकि हम तो सिवाय सांत्वना के उन्हें कुछ नहीं दे सकते. केवल इतना कह सकते हैं कि भगवान गौतम की आत्मा को शांति दें, जिसे कहने की कोई आवश्यकता ही नहीं है. क्योंकि वह देश पर कुर्बान हुआ है और देश पर कुर्बान होने वालों को तो स्वयं भगवान भी सलाम करते हैं और उसके परिजनों को यह दुःख सहन करने की शक्ति दें.


गौतम पंवार को सलाम और उनसे भी पहले मुनेश को मेरा बार-बार सलाम, क्योंकि आपने माँ का पद एक बार फिर नमन योग्य बना दिया है. बस अब केवल यही-


एे मेरे वतन के लोगों,
ज़रा आँख में भर लो पानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी.”
जय हिन्द-जय गौतम-जय मुनेश

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