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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी दौरे पर शहंशाहपुर में शौचालय की नींव रख स्वच्छता अभियान की शुरुआत की. पीएम ने यहां एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हम में से कोई गंदगी में नहीं रहना चाहता, लेकिन फिर भी स्वच्छता हमारी जिम्मेदारी है. यह स्वभाव हमारे देश में पनपा नहीं है. उन्होंने कहा कि गंदगी हम करते हैं और स्वच्छता कोई और करेगा, यह प्रवृत्ति हमारे समाज से गई नहीं है.
प्रधानमंत्री मोदी जी की जितनी तारीफ की जाये कम है. क्योंकि उन्होंने जिस काम का बीड़ा उठाया है, वह हमारे देश का एक बहुत बड़ा कलंक है और आश्चर्य है कि आज से पहले इस ओर किसी का ध्यान गया ही नहीं. बस में होते थे या ट्रेन में, खेतों में शौच के लिए जाते लोग दिख जाते थे. महिलाओं की स्थिति तो इतनी ख़राब थी या कहूं कि अब भी है, क्योंकि अभी भी इसका समूल निपटारा थोड़े ही हुआ है. यही कि महिलाओं के साथ कितने ही बलात्कार उनके शौच जाने के समय ही होते थे और होते हैं भी, किन्तु शौचालय को इज़्ज़तघर नाम देना गले से नीचे नहीं उतर रहा.
हमारे समाज में शायद सर्वाधिक अपराध महिलाओं के साथ ही होते हैं. दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, छेड़छाड़, तेजाब डालना और सबसे निकृष्ट बलात्कार, जिसके बारे में मैं बेखटके कह सकती हूँ कि इसका एक मुख्य कारण इसे नारी की व उसके परिवार की इज़्ज़त से जोड़ दिया जाता है. इसके बाद नारी की व उसके परिवार की ज़िंदगी लगभग खत्म ही हो जाती है. अब प्रधानमंत्री जी ने भी इसे इज़्ज़तघर नाम दे दिया. इसका साफ़-साफ फायदा ऐसे वहशी उठाएंगे, जिनका कार्य केवल औरतों से बलात्कार करना है और अब निश्चित ये आक्रमण वहीं होने हैं.
गुड़गांव का प्रद्युम्न हत्याकांड भी शौचालय में ही हुआ है. अगर हम थोड़ा सा विचार करें तो हम पाएंगे कि गाँधी जी ने हरिजन नाम दिया, इस जाति के लोगों को नीचे दिखाने के लिए नहीं, अपितु भगवान का इनके प्रति अटूट स्नेह दिखाने के लिए और आज यही नाम इनके लिए नफरत की श्रेणी में है.
ऐसे में मेरा कहना है कि इसे इज़्ज़त से न जोड़कर सुविधा सुरक्षा से जोड़ा जाये, तो ज्यादा उपयुक्त रहेगा. क्योंकि ये एक मानने लायक बात है कि यदि बलात्कार से नारी व उसके परिवार की इज़्ज़त के लुटने से जोड़ना बंद हो जाये, इसे मात्र एक अपराध की श्रेणी मिल जाये, तो ये अपराध नगण्य होते देर नहीं लगेगी.
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