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शामली-कैराना को संयुक्त रूप से जिला घोषित करना चाहिए

! मेरी अभिव्यक्ति !
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kairana shamali


योगी सरकार का प्रदेश में सत्तारूढ़ होना प्रदेश के लिए लगभग सभी मायनों में लाभकारी दिखाई दे रहा है. योगी सरकार ने अपनी छठी कैबिनेट बैठक में लिये गये इन फैसलों से कैराना के अधिवक्ताओं में पुन:उममीद की किरण जगा दी. वे फैसलै हैं, फैजाबाद व अयोध्या को मिलाकर अयोध्या नगर निगम बनाया जाएगा। बैठक में मथुरा-वृंदावन नगर निगम बनाने को भी दी मंजूरी। अब योगी सरकार से मेरा निवेदन जिस मांग को लेकर है, वो यह है-


शामली 28 सितम्बर २०११ को मुज़फ्फरनगर से अलग करके एक जिले के रूप में स्थापित किया गया. जिला बनने से पूर्व शामली तहसील रहा है और यहाँ तहसील सम्बन्धी कार्य ही निबटाये जाते रहे हैं. न्यायिक कार्य दीवानी, फौजदारी आदि के मामले शामली से कैराना और मुज़फ्फरनगर जाते रहे हैं और जिला बनने से लेकर आज तक शामली तरस रहा है, एक जिले की तरह की स्थिति पाने के लिए.


सरकार द्वारा अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए जिलों की स्थापना की घोषणा तो कर दी जाती है, किन्तु सही वस्तुस्थिति जो क़ि एक जिले के लिए चाहिए, उसके बारे में उसे न तो कोई जानकारी चाहिए न उसके लिए कोई प्रयास ही सरकार द्वारा किया जाता है. पूर्व में उत्तर प्रदेश सरकार ऐसा बड़ौत क्षेत्र के साथ भी कर चुकी है. जिले की सारी आवश्यक योग्यता रखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बागपत को जिला बना दिया गया.


आज शामली जो क़ि न्यायिक व्यवस्था में बिलकुल पिछड़ा हुआ है, उसके न्यायालयों को जिले के न्यायालय का दर्जा देने की कोशिश की जा रही है. उसके लिए शामली के अधिवक्ता भवन स्थापना के लिए शामली में अस्थायी भवनों की तलाश करते रहे हैं और कैराना जो क़ि इस संबंध में बहुत अग्रणी स्थान है, उसे महत्वपूर्ण दर्जा से दूर रखा जा रहा है. शामली वह जगह है, जहाँ आज तक सिविल जज जूनियर डिवीज़न तक की कोर्ट नहीं है और कैराना के बारे में आप जान सकते हैं कि वहां न्यायिक व्यस्था अपने सम्पूर्ण स्वरूप में है।

आज कैराना न्यायिक व्यवस्था के मामले में उत्तरप्रदेश में एक सुदृढ़ स्थिति रखता है. कैराना में न्यायिक व्यवस्था की पृष्ठभूमि के बारे में बार एसोसिएशन कैराना के पूर्व अध्यक्ष कौशल प्रसाद एडवोकेट जी बताते थे कि सन् १८५७ में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के द्वारा ऐतिहासिक क्रांति का बिगुल बजने के बाद मची उथल-पुथल से घबराये ब्रिटिश शासन के अंतर्गत संयुक्त प्रान्त (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) ने तहसील शामली को सन् 1887 में महाभारत काल के राजा कर्ण की राजधानी कैराना में स्थानांतरित कर दिया. तहसील स्थानांतरण के दो वर्ष पश्चात् सन १८८९ में मुंसिफ शामली के न्यायालय को भी कैराना में स्थानांतरित कर दिया. ब्रिटिश शासन काल की संयुक्त प्रान्त सरकार द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रान्त) में स्थापित होने वाले चार मुंसिफ न्यायालयों- गाजियाबाद, नगीना, देवबंद और कैराना हैं. मुंसिफ कैराना के क्षेत्राधिकार में पुरानी तहसील कैराना व तहसील बुढ़ाना का।


ऐसे में राजनीतिक फैसले के कारण शामली को भले ही जिले का दर्जा मिल गया हो, किन्तु न्यायिक व्यवस्था के सम्बन्ध में अभी शामली बहुत पीछे है. शामली में अभी कलेक्ट्रेट के लिए भूमि चयन का मामला भी पूरी तरह से तय नहीं हो पाया है, जबकि कैराना में पूर्व अध्यक्ष महोदय के अनुसार तहसील भवन के नए भवन में स्थानांतरित होने के कारण, जहाँ १८८७ से २०११ तक तहसील कार्य किया गया, वह समस्त क्षेत्र इस समय रिक्त है और वहां जनपद न्यायाधीश के न्यायालय के लिए उत्तम भवन का निर्माण हो सकता है.


साथ ही कैराना कचहरी में भी ऐसे भवन हैं, जहाँ अभी हाल-फ़िलहाल में भी जनपद न्यायाधीश बैठ सकते हैं और इस सम्बन्ध में किसी विशेष आयोजन की आवश्यकता नहीं है. फिर कैराना कचहरी शामली मुख्यालय से मात्र १० किलोमीटर दूरी पर है, जबकि जिस जगह का चयन शामली जिले के लिए जिला जज के न्यायालय के निर्माण की तैयारी चल रही है, वह शामली मुख्‍यालय से  12 किलोमीटर दूर है.


ऐसे में क्या ये ज़रूरी नहीं है क़ि सरकार सही स्थिति को देखते हुए शामली को कैराना के साथ मिलकर जिला घोषित करे, जिससे इस व्यवस्था के करने में वह पैसा जो जनता की गाढ़ी कमाई से सरकार को मिलता है व्यर्थ में व्यय न हो और सरकार का काम भी सरल हो जाये. ये कहाँ का न्याय है क़ि एक जगह जो पहले से ही न्याय के क्षेत्र में ऊंचाइयां हासिल कर चुकी है, उसे उसके मुकाबले निचले दर्जे पर रखा जाये, जो उसके सामने अभी बहुत निचले स्थान पर है. उत्तर प्रदेश सरकार को इस पर विचार करते हुए शामली-कैराना को संयुक्त रूप से जिला घोषित करना ही चाहिए.

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