! मेरी अभिव्यक्ति !
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माथे ऊपर हाथ वो धरकर,
बैठी पत्थर सी होकर,
जीवन अब ये कैसे चलेगा,
चले गए जब पिया छोड़कर।
बापू ने पैदा होते ही,
झाड़ू-पोंछा हाथ थमाया,
मां ने चूल्हा-चौका दे दिया,
चकला-बेलन हाथ थामकर।
पढ़ना चाहा पाठशाला में,
बाबा जी से कहकर देखा,
बापू ने जब आंख तरेरी,
मां ने डांट दिया धमकाकर।
आठ बरस की होते मुझको,
विदा किया बैठाकर डोली,
तबसे था बस एक सहारा,
मेरे पिया मेरे हमजोली।
उनके बच्चे की माता थी,
उनके घर की चौकीदार,
सारा जीवन अपना देकर,
मिला न एक भी खेवनहार।
आज गए वो मुझे छोड़कर,
घर-गृहस्थी कहीं और ज़माने,
बच्चों का भी लगा कहीं मन,
मुझको सारे बोझ ही माने।
व्यथा कहूं क्या इस जीवन की,
जिम्मेदारी है ये खुद की,
मर्द के हाथ में दी जब डोरी,
बनोगी उसकी ही कठपुतली।
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