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चली है लाठी-डंडे लेकर भारतीय नारी ,
तोड़ेगी सारी बोतलें अब भारतीय नारी।
बहुत दिनों से सहते-सहते बेदम हुई पड़ी थी,
तोड़ेगी उनकी हड्डियां आज भारतीय नारी।
लाता नहीं है एक भी पैसा तू कमाकर ,
करता नहीं है काम घर का एक भी आकर ,
मुखिया तू होगा घर का मेरे कान खोल सुन,
जब जिम्मेदारी मानेगा खुद शीश उठाकर,
गर ऐसा करने को यहां तैयार नहीं है,
मारेगी धक्के आज तेरे भारतीय नारी।
उठती सुबह को तुझसे पहले घर को संवारूं,
खाना बनाके देके तेरी आरती उतारूं,
फिर लाऊं कमाई करके सिरपे ईंट उठाकर
तब घर पे आके देख तुझे भाग्य संवारूं,
मेरे ही नोट से पी मदिरा मुझको तू मारे,
अब मारेगी तुझको यहां की भारतीय नारी .
पिटना किसी भी नारी का ही भाग्य नहीं है,
अब पीट भी सकती है तुझे भारतीय नारी।
जीवन लिखा है साथ तेरे मेरे करम ने,
तू मौत नहीं मेरी कहे भारतीय नारी।
लगाया पार दुष्टों को है देवी खडग ने,
तुझको भी तारेगी अभी ये भारतीय नारी।
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