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मीरा कुमार जी को हटाया क्यूं नहीं सुषमा जी?

! मेरी अभिव्यक्ति !
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विपक्षी दलों ने जब से भाजपा के राष्ट्रपति पद के दलित उम्मीदवार श्री रामनाथ कोविंद के सामने दलित उम्मीदवार के ही रूप में मीरा कुमार जी को खड़ा किया है तब से भाजपा के नेताओं व् भाजपा के समर्थकों के पसीने छूटने लगे  हैं.कभी मीरा कुमार जी के दलित होने को लेकर सोशल मीडिया पर खील्ली उड़ाई जा रही है तो कभी उनके एक लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल को लेकर सुषमा स्वराज जी द्वारा व्यर्थ की बयानबाजी ट्विटर पर की जा रही है और ये सब उस घबराहट का परिणाम है जो कि अपने उम्मीदवार की हार जीत को लेकर उपजती है और जबकि सभी जानते हैं कि रामनाथ कोविंद जी की जीत तय है तब भी ये व्यर्थ की बयानबाजी ,सोशल मीडिया का दुरूपयोग ,समझ से परे है .

       मीरा कुमार जी के पति को ब्राह्मण बताकर उनके दलित होने को लेकर विवाद खड़ा किया जा रहा है और ये सब हो रहा है उनके पति श्री मंजुल कुमार जी के नाम में शास्त्री शब्द का जुड़ा होना जबकि सभी जानते हैं कि शास्त्री एक उपाधि है जिसे कोई भी शास्त्री की शिक्षा प्राप्त करके हासिल कर सकता है .

       और रही उनके लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल की बात तो सबसे पहले हमें लोकसभा अध्यक्ष के सम्बन्ध में संवैधानिक स्थिति को जान लेना चाहिए –

लोकसभा अध्यक्ष

लोकसभा अध्यक्ष, भारतीय संसद के निम्नसदन, लोकसभाका सभापति एवं अधिष्ठाता होता है। उसकी भूमिकावेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित किसी भी अन्य शासन-व्यवस्था के वैधायिकीय सभापति के सामान होती है। उसका निर्वाचन लोकसभा चुनावों के बाद, लोकसभा की प्रथम बैठक में ही कर लिया जाता है। वह संसद के सदस्यों में से ही पाँच साल के लिए चुना जाता है। उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अपने राजनितिक दल से इस्तीफा दे दे, ताकि कार्यवाही में निष्पक्षता बनी रहे। वर्त्तमान लोकसभा अध्यक्षश्रीमती सुमित्रा महाजन है, जोकि अपनी पूर्वाधिकारी, मीरा कुमार के बाद, इस पद की दूसरी महिला पदाधिकारी हैं।

निर्वाचनसंपादित करें

लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन लोकसभा के सदस्यों के द्वारा किया जाता है। निर्वाचन की तिथि राष्ट्रपति के द्वारा निश्चित की जाती है। राष्ट्रपति के द्वारा निश्चित की गयी तिथि की सूचना लोकसभा का महासचित सदस्यों को देता है। निर्वाचन की तिथि के एक दिन पूर्व के मध्याह्न से पहले किसी सदस्य द्वारा किसी अन्य सदस्य को अध्यक्ष चुने जाने का प्रस्ताव महासचिव को लिखित रूप में दिया जाता है। यह प्रस्ताव किसी तीसरे सदस्य द्वारा अनुमोदित होना चाहिए। इस प्रस्ताव के साथ अध्यक्ष के उम्मीदवार सदस्य का यह कथन संलग्न होता है कि वह अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए तैयार है। निर्वाचन के लिए एक या अधिक उम्मीदवारों द्वारा प्रस्ताव किये जा सकते हैं। यदि एक ही प्रस्ताव पेश किया जाता है, तो अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मत होता है और यदि एक से अधिक प्रस्ताव प्रस्तुत होते हैं, तो मतदान कराया जाता है। मतदान में लोकसभा के सदस्य ही शामिल होकर अध्यक्ष का बहुमत से निर्वाचन करते हैं।

शक्तियाँ और कार्य

लोकसभा-अध्यक्ष लोकसभा के सत्रों की अध्यक्षता करता है और सदन के कामकाज का संचालन करता है। वह निर्णय करता है कि कोई विधेयक, धन विधेयक है या नहीं। वह सदन का अनुशासन और मर्यादा बनाए रखता है और इसमें बाधा पहुँचाने वाले सांसदों को दंडित भी कर सकता है। वह विभिन्न प्रकार के प्रस्ताव और संकल्पों, जैसे अविश्वास प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, सेंसर मोशन, को लाने की अनुमति देता है और अटेंशन नोटिस देता है। अध्यक्ष ही यह तय करता है कि सदन की बैठक में क्या एजेंडा लिया जाना है।

वेतन और भत्ते

कार्यकाल अवधि और पदमुक्तिसंपादित करें

अध्यक्ष का कार्यकाल लोकसभा विघटित होने तक होता है। कुछ स्थितियों में वह इससे पहले भी पदमुक्त हो सकता है-   इस सम्बन्ध में भारतीय संविधान का अनुच्छेद ९४ [ग] कहता है कि-वे लोकसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित किये गए एक प्रस्ताव द्वारा अपने पद से हटाए जा सकते हैं .

लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर)संपादित करें

मुख्य लेख : लोक सभा अध्यक्ष

लोकसभा अपने निर्वाचित सदस्यों में से एक सदस्य को अपने अध्यक्ष (स्पीकर) के रूप में चुनती है, जिसे अध्यक्षकहा जाता है। कार्य संचालन में अध्यक्ष की सहायता उपाध्यक्ष द्वारा की जाती है, जिसका चुनाव भी लोक सभा के निर्वाचित सदस्य करते हैं। लोक सभा में कार्य संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष का होता है।

लोकसभा का अध्यक्ष होता है इसका चुनाव लोकसभा सदस्य अपने मध्य मे से करते है। लोकसभा अध्यक्ष के दो कार्य है-
1. लोकसभा की अध्यक्षता करना उस मे अनुसाशन गरिमा तथा प्रतिष्टा बनाये रखना इस कार्य हेतु वह किसी न्यायालय के सामने उत्तरदायी नही होता है

2. वह लोकसभा से संलग्न सचिवालय का प्रशासनिक अध्यक्ष होता है किंतु इस भूमिका के रूप मे वह न्यायालय के समक्ष उत्तरदायी होगा

स्पीकर की विशेष शक्तियाँ
1. दोनो सदनॉ का सम्मिलित सत्र बुलाने पर स्पीकर ही उसका अध्यक्ष होगा उसके अनुउपस्थित होने पर उपस्पीकर तथा उसके भी न होने पर राज्यसभा का उपसभापति अथवा सत्र द्वारा नांमाकित कोई भी सदस्य सत्र का अध्यक्ष होता है

2. धन बिल का निर्धारण स्पीकर करता है यदि धन बिल पे स्पीकर साक्ष्यांकित नही करता तो वह धन बिल ही नही माना जायेगा उसका निर्धारण अंतिम तथा बाध्यकारी होगा

3. सभी संसदीय समितियाँ उसकी अधीनता मे काम करती है उसके किसी समिति का सदस्य चुने जाने पर वह उसका पदेन अध्यक्ष होगा

4. लोकसभा के विघटन होने पर भी उसका प्रतिनिधित्व करने के लिये स्पीकर पद पर कार्य करता रहता है नवीन लोकसभा चुने जाने पर वह अपना पद छोड देता है.
     अब ऐसे में एक आम भारतीय यदि सुषमा जी के ट्वीट को लेकर उनका समर्थन करता है तो उसे उसके लिए संविधान को दरकिनार कर देना चाहिए जो कि इस देश का सर्वोच्च कानून है और जो ये कहता है कि आप लोकसभा का अध्यक्ष स्वयं चुनिए और यदि उसकी कार्यप्रणाली आपको सही प्रतीत नहीं होती है तो उसे हटा दीजिये ,उसके अनुचित बर्ताव को बर्दाश्त करने की ज़रुरत नहीं है .भारतीय संस्कृति में ”शठे शाठ्यम समाचरेत  ”की शिक्षा दी गयी है जो कि यह कहती है कि दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार किया जाये और जब सुषमा जी को मीरा कुमार जी ६ मिनट में ६० बार केवल इसलिए टोकती हैं कि वे सत्ता पक्ष का काला पक्ष उजागर न कर पाएं तो सुषमा जी की ये जिम्मेदारी बनती थी कि तभी तुरंत कार्यवाही कर उन्हें उनके पद से हटवाएं किन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और देश को इतने बड़े संकट में फंसे रहने दिया .

     अब सुषमा जी ही हमें बताएं कि हम अब इस स्थिति में क्या कर सकते हैं क्योंकि अब तो उन्हें चुनना या न चुनना हमारे हाथ में है ही नहीं अब तो सब कुछ संविधान ने आपके और आप जैसे माननीयों के हाथ में दे रखा है और हमें आपकी ये ट्वीट्स बता रही हैं कि संविधान की मान्यता पर आप जैसे माननीयों द्वारा जो खतरा उत्पन्न किया जाता है उसके बचाव का कोई साधन हमें संविधान के पुनः संशोधन द्वारा ढूंढना ही होगा क्योंकि ऐसा अन्याय भारत की जनता तो बर्दाश्त नहीं करेगी. आप लोग राजनैतिक महत्वाकांक्षा को लेकर भले ही खून के घूँट पी लें पर हम इस देश को खून के घूँट नहीं पीने देंगे और आपकी तरह अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेंगे जो कि आप संविधान द्वारा अधिकार मिलने के बावजूद मीरा कुमार जी को अधिकार दे बर्दाश्त करती रही क्योंकि कहा भी है –
”अन्याय को सहना भी अन्याय ही करना है .”

शालिनी कौशिक 
   [  कौशल ]

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