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संभल जा रे नारी ….

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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”हैलो शालिनी ” बोल रही है क्या ,सुन किसी लड़की की आवाज़ मैंने बेधड़क कहा कि हाँ मैं ही बोल रही हूँ ,पर आप ,जैसे ही उसने अपना नाम बताया ,अच्छा लगा ,कई वर्षों बाद अपनी सहपाठी से बात कर  रही हूँ ,पर आश्चर्य हुआ कि आखिर उसे मेरा नंबर कैसे मिला ,क्योंकि आज जो फोन नंबर की स्थिति है यह अबसे २० साल पहले नहीं थी ,२० साल पहले चिट्ठी से बात होती थी ,पत्र भेजे जाते थे किन्तु आज जिससे बात करनी है फ़ौरन नंबर दबाया और उससे कर ली बात ,खैर मैंने उससे पुछा ,”तुझे मेरा नंबर कैसे मिला ,तो उसने एकदम बताया कि लिया है किसी से ,बहुत परेशानी में हूँ ,क्या हुआ ,मेरे यह पूछते ही वह पहले रोने लगी और फिर उसने बतायी अपनी आपबीती ,जो न केवल उसकी बल्कि आज की ६०%महिलाओं की आपबीती है और महिलाएं उसे सह रही हैं और सब कुछ सहकर भी अपनी मुसीबतों के जिम्मेदार को बख्श रही हैं .

मेरी सहपाठी के अनुसार शादी को २० वर्ष हो गए और उसका पति अब उसका व् बच्चों का कुछ नहीं करता और साथ ही यह भी कहता है कि यदि मेरे खिलाफ कुछ करोगी तो कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि अगर तुमने मुझे जेल भी भिजवाने की कोशिश की तो देख लेना मैं अगले दिन ही घर आ जाऊंगा .ऐसे में एक अधिवक्ता होने के नाते जो उपाय उसके पति का दिमाग ठीक करने के लिए मैं बता सकती थी मैंने बताये पर देखो इस भारतीय नारी का अपने पति के लिए और वो भी ऐसे पति के लिए जो पति होने का कोई फ़र्ज़ निभाने को तैयार नहीं ,उसने वह उपाय मानने से इंकार कर दिया क्योंकि उसे केवल पति से भरण-पोषण चाहिए था और उसके लिए वह कोर्ट के धक्के खाने को भी तैयार नहीं थी ,नहीं जानती जिसे कि जो पति इस स्थिति में तुझे घर से निकल सकता है, अपने बच्चों को घर से बाहर धकिया सकता है ,२० साल साथ रहने पर भी तेरे चरित्र पर ऊँगली उठा सकता है ,सरकारी नौकर नहीं है ,ज़मीन जायदाद वाला नहीं है ,कोर्ट ने भरण पोषण का खर्चा उस पर डाल भी दिया तो वह क्या देगा ? उसके लिए तुझे फिर भरण-पोषण के खर्चे के निष्पादन के लिए फिर कोर्ट जाना पड़ेगा और जिसे जेल जाने से बचाने का तू प्रयास कर रही है उसे उसके कर्मो के हिसाब से फिर जेल जाने का ही कदम उठाने का प्रयास करना पड़ेगा ,क्योंकि वह अगर उसे भरण-पोषण देने के ही मूड में होता तो २० साल की शादी को ऐसे नहीं तोड़ता ,अपनी जिम्मेदारी से ऐसे पल्ला नहीं झाड़ता ,और रही कोर्ट की बात तो ३-४ साल तो हे भारतीय नारी इस पर अमल भूल जा क्योंकि भारत के न्यायालय की कार्यवाही बहुत सुस्त है ,ऐसे में वह कुछ जवाब न देते हुए सोचने को मजबूर हो गयी .

ये है भारतीय नारी जो आदमी के ज़ुल्म सह-सहकर भी उसके भले की ही सोचती रहती है .अगर ऐसे में मैं एक और माननीय भारतीय नारी की बात करूँ तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि इसकी तो नस्ल ही ऐसी है ,जिसे अपनी दो-दो लड़कियों को ले ससुराल से माँ के घर इसलिए आना पड़ गया कि पति नालायक व् नाकारा था और स्वयं की सारी कोशिशों से उन बच्चियों का पालन-पोषण करना पड़ा वह भी अपने पति के आगे अपने घुटने टेकने से स्वयं को नहीं रोक सकी  और उसके दबाव में आकर एक और संतान को जन्म दे दिया जबकि उसकी सारी कॉलोनी उसके साथ थी ,जिस बाप ने बच्चियों के पालन -पोषण में कोई योगदान न दिया , अपनी ज़मीन जायदाद भी उठाकर बेटा होते हुए भतीजे को दे दी ,बेटी के ब्याह में भी न आया उस तक को उन बच्चों की माँ ने बख्श दिया .कैसे सुधर सकता है ये समाज ? और कैसे कहा जा सकता है इस नारी को नारीशक्ति ,जो अन्यायी को अन्याय का प्रतिकार अपने आंसुओं के रूप में दे ,अपने बच्चों को निराश्रितता के रूप में दे .

नारी शक्ति है ,वह संसार की सभी शक्तियों से लड़कर अपना एक मुकाम बना सकती है ,वह अपने बच्चों को अपने दम पर इस जगत में खड़ा कर सकती है ,वह आतताई शक्तियों को ठेंगा दिखा सकती है ,उनका मुंह तोड़ सकती है और उसने यह सब किया भी है ,ऐसे में इस एक भावनात्मक रिश्ते की डोर नारी को कब तक कमजोर बनाती रहेगी ? उसे इस रिश्ते की डोर से स्वयं को ऐसी परिस्थितियों में आज़ाद करना ही होगा और जैसे को तैसा की प्रवर्ति अपनाते हुए अपने व् अपने से जुड़े हर शख्स ,चाहे वह नारी की माता -पिता व् संतान कोई भी क्यों ‘न हो ,को मजबूती का स्तम्भ बनकर दिखाना ही होगा तभी वह यह कहती हुई शोभायमान होगी –

”अभी तक सो रहे हैं जो ,उन्हें आवाज़ तो दे दूँ ,

बिलखते बादलों को मैं कड़कती गाज तो दे दूँ .

जनम भर जो गए जाते,जनम भर जो गए पीसे

उन्हें मैं तख़्त तो दे दूँ ,उन्हें मैं ताज़ तो दे दूँ ”

शालिनी कौशिक

[कौशल ]

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