! मेरी अभिव्यक्ति !
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दर्द गृहस्थी का ,बह रहा आँखों से छलके ,
ये उसके पल्लू बाँधा है ,उसी के अपनों ने बढ़के .
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पिता के आदेशों को मान ,चली थी संग जिसके वो.
उसी ने सड़कों पर डाला ,उसे बच्चे पैदा करके.
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वफ़ादारी निभाई थी ,रात -दिन फाका करती थी ,
बदचलन कहता फिरता है ,बगल में दूसरी धरके .
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वो अपने बच्चों की रोटी,कमाकर खुद ही लाती है ,
उसे भी लूट लेता है ,उसी के हाथों से झटके.
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अगर अंजाम शादी का ,ऐसा ही भयानक है,
कुंवारी ही जिए लड़की ,कुंवारी ही बचे मरके.
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दिखी है ”शालिनी”को अब ,दुनिया में बर्बादी है ,
कोई पागल ही होगा अब ,मरे जो शादियां करके .
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शालिनी कौशिक
[कौशल]
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