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….गर रख लो जायदाद .

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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दो पल सुकून के नहीं ,गर रख लो जायदाद ,
पलकें झपक न पाओगे ,गर रख लो जायदाद ,
चुभती हैं अपने हाथों पर अपनी ही रोटियां
खाना भी खा न पाओगे ,गर रख लो जायदाद .
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क्या करती बड़े घर का तू ,इंसान बेऔलाद ,
रहने को घर न चाहिए ,गर रख लो जायदाद .
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मुझको भी रख ले साथ में,चाहत है सभी की,
अकेले रह न पायेगी ,गर रख लो जायदाद .
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ज़ालिम तू इस ज़माने से ,क्यों नहीं डर रही ,
डर-डर के जी सके है तू ,गर रख लो जायदाद .
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मकान हो,दुकान हो ,हैं और किसी की,
अकेले हो ज़माने में ,गर रख लो जायदाद.
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पहचान ले ज़माने की ,असलियत ”शालिनी ”,
फुकती ही रहेगी सदा ,गर रख लो जायदाद .

…शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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