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चर्चा कार

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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चर्चा कार

करते हैं बैठ चर्चा,
खाली ये जब भी होते,
कोई काम इनको करते
मैने कभी न देखा.
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वो उसके साथ आती,
उसके ही साथ जाती,
गर्दन उठा घुमाकर
बस इतना सबने देखा.
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खाते झपट-झपट कर,
औरों के ये निवाले,
अपनी कमाई का इन्हें
टुकड़ा न खाते देखा.
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बेचारा उसे कहते,
जिसकी ये जेब काटें,
कुछ करने के समय पर
मौके से भागा देखा.
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ठेका भले का इन पर,
मालिक ये रियाया के,
फिर भी जहन्नुमों में
इनको है बैठे देखा.
………………………………………………..
शालिनी कौशिक
(कौशल)

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