Menu
blogid : 12172 postid : 1319637

शादीशुदा दासी नहीं

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
  • 791 Posts
  • 2130 Comments

आज जैसे जैसे महिला सशक्तिकरण की मांग जोर पकड़ रही है वैसे ही एक धारणा और भी बलवती होती जा रही है वह यह कि विवाह करने से नारी गुलाम हो जाती है ,पति की दासी हो जाती है और इसका परिचायक है बहुत सी स्वावलंबी महिलाओं का विवाह से दूर रहना .
यदि हम सशक्तिकरण की परिभाषा में जाते हैं तो यही पाते हैं कि ”सशक्त वही है जो स्वयं के लिए क्या सही है ,क्या गलत है का निर्णय स्वयं कर सके और अपने निर्णय को अपने जीवन में कार्य रूप में परिणित कर सके ,फिर इसका विवाहित होने या न होने से कोई मतलब ही नहीं है .हमारे देश का इतिहास इस बात का साक्षी है कि हमारे यहाँ कि महिलाएं सशक्त भी रही हैं और विवाहित भी .उन्होंने जीवन में कर्मक्षेत्र न केवल अपने परिवार को माना बल्कि संसार के रणक्षेत्र में भी पदार्पण किया और अपनी योग्यता का लोहा मनवाया .
मानव सृष्टि का आरंभ केवल पुरुष के ही कारण नहीं हुआ बल्कि शतरूपा के सहयोग से ही मनु ये कार्य संभव कर पाए .
वीरांगना झलकारी बाई पहले किसी फ़ौज में नहीं थी .जंगल में रहने के कारण उन्होंने अपने पिता से घुड़सवारी व् अस्त्र -शस्त्र सञ्चालन की शिक्षा ली थी .उनकी शादी महारानी लक्ष्मीबाई तोपखाने के वीर तोपची पूरण सिंह के साथ हो गयी और यदि स्त्री का विवाहित होना ही उसकी गुलामी का परिचायक मानें तो यहाँ से झलकारी की जिंदगी मात्र किलकारी से बंधकर रह जानी थी किन्तु नहीं ,अपने पति के माध्यम से वे महारानी की महिला फौज में भर्ती हो गयी और शीघ्र ही वे फौज के सभी कामों में विशेष योग्यता वाली हो गयी .झाँसी के किले को अंग्रेजों ने जब घेरा तब जनरल ह्यूरोज़ ने उसे तोपची के पास खड़े गोलियां चलाते देख लिया उस पर गोलियों की वर्षा की गयी .तोप का गोला पति के लगने पर झलकारी ने मोर्चा संभाला पर उसे भी गोला लगा और वह ”जय भवानी”कहती हुई शहीद हो गयी उसका बलिदान न केवल महारानी को बचने में सफल हुआ अपितु एक महिला के विवाहित होते हुए उसकी सशक्तता का अनूठा दृष्टान्त सम्पूर्ण विश्व के समक्ष रख गया .
भारत कोकिला ”सरोजनी नायडू”ने गोविन्द राजलू नायडू ”से विवाह किया और महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए १९३२ के नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया .
कस्तूरबा गाँधी महात्मा गाँधी जी की धर्मपत्नी भी थी और विवाह को एक संस्कार के रूप में निभाने वाली होते हुए भी महिला सशक्तिकरण की पहचान भी .उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं में सत्याग्रह का शंख फूंका .
प्रकाशवती पाल ,जिन्होंने २७ फरवरी १९३१ को चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद क्रांति संगठन की सूत्र अपने हाथ में लेकर काम किया १९३४ में दिल्ली में गिरफ्तार हुई .पहले विवाह से अरुचि रखने वाली व् देश सेवा की इच्छुक प्रकाशवती ने बरेली जेल में यशपाल से विवाह किया किन्तु इससे उनके जीवन के लक्ष्य में कोई बदलाव नहीं आया .यशपाल ने उन्हें क्रन्तिकारी बनाया और प्रकाशवती ने उन्हें एक महान लेखक .
सुचेता कृपलानी आचार्य कृपलानी की पत्नी थी और पहले स्वतंत्रता संग्राम से जुडी कर्तव्यनिष्ठ क्रांतिकारी और बाद में उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री .क्या यहाँ ये कहा जा सकता है कि विवाह ने कहीं भी उनके पैरों में बंधन डाले या नारी रूप में उन्हें कमजोर किया .
प्रसिद्ध समाज सुधारक गोविन्द रानाडे की पत्नी रमाबाई रानाडे पति से पूर्ण सहयोग पाने वाली ,पूना में महिला सेवा सदन की स्थापक ,जिनकी राह में कई बार रोड़े पड़े लेकिन न तो उनके विवाह ने डाले और न पति ने डाले बल्कि उस समय फ़ैली पर्दा ,छुआछूत ,बाल विवाह जैसी कुरीतियों ने डाले और इन सबको जबरदस्त टक्कर देते हुए रमाबाई रानाडे ने स्त्री सशक्तिकरण की मिसाल कायम की .
देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने फ़िरोज़ गाँधी से अंतरजातीय विवाह भी किया और दो पुत्रों राजीव व् संजय की माँ भी बनी और दिखा दिया भारत ही नहीं सारे विश्व को कि एक नव पल्लवित लोकतंत्र की कमान किस प्रकार कुशलता से संभालकर पाकिस्तान जैसे दुश्मनों के दांत खट्टे किये जाते हैं .क्या यहाँ विवाह को उनका कारागार कहा जा सकता है .पत्नी व् माँ होते हुए भी बीबीसी की इंटरनेट न्यूज़ सर्विस द्वारा कराये गए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में उन्हें ”सहस्त्राब्दी की महानतम महिला [woman of the millennium ]घोषित किया गया .
भारतीय सिनेमा की प्रथम अभिनेत्री देविका रानी पहले प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक हिमांशु राय की पत्नी रही और बाद में विश्विख्यात रुसी चित्रकार स्वेतोस्लाव रोरिक की पत्नी बनी और उनके साथ कला ,संस्कृति तथा पेंटिंग के क्षेत्र में व्यस्त हो गयी कहीं कोई बंदिश नहीं कहीं कोई गुलामी की दशा नहीं दिखाई देती उनके जीवन में कर्णाटक चित्रकला को उभारने में दोनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा .१९६९ में सर्वप्रथम ”दादा साहेब फाल्के ” व् १९५८ में ”पद्मश्री ”महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय स्थान रखते हैं .
”बुंदेलों हरबोलों के मुहं हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी ”कह राष्ट्रीय आन्दोलन में नवतेज भरने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान ”कर्मवीर” के संपादक लक्ष्मण सिंह की विवाहिता थी किन्तु साथ ही सफल राष्ट्र सेविका ,कवियत्री ,सुगृहणी व् माँ थी .स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे मध्य प्रदेश विधान सभा की सदस्य भी रही .गुलाम भारत की इस राष्ट्र सेविका के जीवन में हमें तो कहीं भी गुलामी की झलक नहीं मिलती जबकि जीवन में जो जो काम समाज ने, समाज के नियंताओं ने ,भगवान् ने वेद ,पुराण में लिखें हैं वे सब से जुडी थी .
बुकर पुरुस्कार प्राप्त करने वाली ,रैली फॉर द वैली का नेतृत्त्व कर नर्मदा बचाओ आन्दोलन को सशक्त करने वाली अरुंधती राय फ़िल्मकार प्रदीप कृष्ण से विवाहित हैं .
पुलित्ज़र पुरुस्कार प्राप्त झुम्पा लाहिड़ी विदेशी पत्रिका के उपसंपादक अल्बर्टो वर्वालियास से विवाहित हैं और अपने जीवन को अपनी मर्जी व् अपनी शर्तों पर जीती हैं .
वैजयन्ती माला ,सोनिया गाँधी ,सुषमा स्वराज ,शीला दीक्षित ,मेनका गाँधी ,विजय राजे सिंधिया ,वनस्थली विद्या पीठ की संस्थापिका श्रीमती रतन शास्त्री ,क्रेन बेदी के नाम से मशहूर प्रथम महिला पुलिस अधिकारी किरण बेदी ,प्रसिद्ध समाज सेविका शालिनी ताई मोघे, प्रथम भारतीय महिला अन्तरिक्ष यात्री कल्पना चावला ,टैफे की निदेशक मल्लिका आदि आदि आदि बहुत से ऐसे नाम हैं जो सशक्त हैं ,विवाहित हैं ,प्रेरणा हैं ,सद गृहस्थ हैं तब भी कहीं कोई बंधन नहीं ,कहीं कोई उलझन नहीं .
अब यदि हम विवाह संस्कार की बात करते हैं तो उसकी सबसे महत्वपूर्ण रस्म है ”सप्तपदी ”जिसके पूरे होते ही किसी दम्पति का विवाह सम्पूर्ण और पूरी तरह वैधानिक मान लिया जाता है .हिन्दू विवाह कानून के मुताबिक सप्तपदी या सात फेरे इसलिए भी ज़रूरी हैं ताकि दम्पति शादी की हर शर्त को अक्षरशः स्वीकार करें .ये इस प्रकार हैं –
१- ॐ ईशा एकपदी भवः -हम यह पहला फेरा एक साथ लेते हुए वचन देते हैं कि हम हर काम में एक दूसरे का ध्यान पूरे प्रेम ,समर्पण ,आदर ,सहयोग के साथ आजीवन करते रहेंगे .
२- ॐ ऊर्जे द्विपदी भवः -इस दूसरे फेरे में हम यह निश्चय करते हैं कि हम दोनों साथ साथ आगे बढ़ेंगे .हम न केवल एक दूजे को स्वस्थ ,सुदृढ़ व् संतुलित रखने में सहयोग देंगे बल्कि मानसिक व् आत्मिक बल भी प्रदान करते हुए अपने परिवार और इस विश्व के कल्याण में अपनी उर्जा व्यय करेंगे .
३-ॐ रायस्पोशय त्रिपदी भवः -तीसरा फेरा लेकर हम यह वचन देते हैं कि अपनी संपत्ति की रक्षा करते हुए सबके कल्याण के लिए समृद्धि का वातावरण बनायेंगें .हम अपने किसी काम में स्वार्थ नहीं आने देंगे ,बल्कि राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानेंगें .
4- ॐ मनोभ्याय चतुष्पदी भवः -चौथे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि आजन्म एक दूजे के सहयोगी रहेंगे और खासतौर पर हम पति-पत्नी के बीच ख़ुशी और सामंजस्य बनाये रखेंगे .
५- ॐ प्रजाभ्यःपंचपदी भवः -पांचवे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि हम स्वस्थ ,दीर्घजीवी संतानों को जन्म देंगे और इस तरह पालन-पोषण करेंगे ताकि ये परिवार ,समाज और राष्ट्र की अमूल्य धरोहर साबित हो .
६- ॐ रितुभ्य षष्ठपदी भवः -इस छठे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि प्रत्येक उत्तरदायित्व साथ साथ पूरा करेंगे और एक दूसरे का साथ निभाते हुए सबके प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करेंगे .
७-ॐ सखे सप्तपदी भवः -इस सातवें और अंतिम फेरे में हम वचन देते हैं कि हम आजीवन साथी और सहयोगी बनकर रहेंगे .
इस प्रकार उपरोक्त ”सप्तपदी ”का ज्ञान विवाह संस्कार की वास्तविकता को हमारे ज्ञान चक्षु खोलने हेतु पर्याप्त है .
इस प्रकार पति-पत्नी इस जीवन रुपी रथ के दो पहिये हैं जो साथ मिलकर चलें तो मंजिल तक अवश्य पहुँचते हैं और यदि इनमे से एक भी भारी पड़ जाये तो रथ चलता नहीं अपितु घिसटता है और ऐसे में जमीन पर गहरे निशान टूट फूट के रूप में दर्ज कर जाता है फिर जब विवाहित होने पर पुरुष सशक्त हो सकता है तो नारी गुलाम कैसे ?बंधन यदि नारी के लिए पुरुष है तो पुरुष के लिए नारी मुक्ति पथ कैसे ?वह भी तो उसके लिए बंधन ही कही जाएगी .रामायण तो वैसे भी नारी को माया रूप में चित्रित किया गया है और माया तो इस सम्पूर्ण जगत वासियों के लिए बंधन है .
वास्तव में दोनों एक दूसरे के लिए प्रेरणा हैं ,एक राह के हमसफ़र हैं और दुःख सुख के साथी हैं .रत्नावली ने तुलसीदास को
”अस्थि चर्ममय देह मम तामे ऐसी प्रीति,
ऐसी जो श्री राम में होत न तो भव भीति . ”
कह प्रभु श्री राम से ऐसा जोड़ा कि उन्हें विश्विख्यात कर दिया वैसे ही भारत की प्रथम महिला चिकित्सक कादम्बिनी गांगुली जो कि विवाह के समय निरक्षर थी को उनके पति ने पढ़ा लिखा कर देश समाज से वैर विरोध झेल कर विदेश भेज और भारत की प्रथम महिला चिकित्सक के रूप में प्रतिष्ठित किया .
इसलिए हम सभी यह कह सकते हैं कि सशक्तिकरण को मुद्दा बना कर नारी को कोई भटका नहीं सकता .अपनी मर्जी से अपनी शर्तों पर जीना सशक्त होना है और विवाह इसमें कोई बाधा नहीं है बाधा है केवल वह सोच जो कभी नारी के तो कभी पुरुष के पांव में बेडी बन जाती है .
इस धरती पर हर व्यक्ति भले ही वह पुरुष हो या नारी बहुत से रिश्तों से जुड़ा है वह उस रूप में कहीं भी नहीं होता जिसे आवारगी की स्थिति कहा जाता है और कोई उस स्थिति को चाहता भी नहीं है और ऐसे में सहयोग व् अनुशासन की स्थिति तो होती है सही और बाकी सभी स्थितियां काल्पनिक बंधन कहे जाते हैं और वे पतन की ओर ही धकेलते हैं .अन्य सब रिश्तों पर यूँ ही उँगलियाँ नहीं उठती क्योंकि वे जन्म से ही जुड़े होते हैं और क्योंकि ये विवाह का नाता ही ऐसा है जिस हम स्वयं जोड़ते हैं इसमें हमारी समझ बूझ ही विवादों को जन्म देती है और इसमें गलतफहमियां इकट्ठी कर देती है .इस रिश्ते के साथ यदि हम सही निर्णय व् समझ बूझ से काम लें तो ये जीवन में कांटे नहीं बोता अपितु जीवन जीना आसान बना देता है .यह पति पत्नी के आपसी सहयोग व् समझ बूझ को बढ़ा एक और एक ग्यारह की हिम्मत लाता है और उन्हें एक राह का राही बना मंजिल तक पहुंचाता है.
शालिनी कौशिक
[कौशल]

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply