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कैराना : राजनीति पलायन की/जागरण जंक्शन में 25 सितंबर को प्रकाशित

! मेरी अभिव्यक्ति !
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कैराना उत्तर प्रदेश की यूं तो मात्र एक तहसील है किन्तु वर्तमान विधान सभा चुनाव के मद्देनजर वोटों की राजधानी बना हुआ है. इसमे पलायन का मुद्दा उठाया गया है और निरन्तर उछाल दे देकर इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देकर वोट बैंक में तब्दील किया जा रहा है जबकि अगर हम मुद्दे की गहराई में जाते हैं तो पलायन की जो मुख्य वजह है “अपराध” वह कोई एक दो दिन में पनपा हुआ नहीं है वह कैराना क्षेत्र की जड़ों में बरसो – बरस से फैला हुआ है. रंगदारी की मांग यहाँ अपराध का एक नवीन तरीका मात्र है. आम जनता में अगर हम जाकर अपराध की स्थिति की बात करें तो आम आदमी का ही कहना है कि कैराना में कभी दंगे नहीं हो सकते क्योंकि अगर यहां दंगे होते हैं तो सेना यहां आकर घर घर पर दबिश देगी और उससे यहां पर घर घर पर अस्तित्व में रहने वाले बम, कट्टे, तमंचे, नशीली दवाओं आदि के अवैध कारोबार का पटाक्षेप हो जायेगा और यही एक कारण है जिस वजह से आज कैराना ” मिनी पाकिस्तान” की उपाधि पा चुका है. मिनी पाकिस्तान यूं क्योंकि जो मुख्यतः पाकिस्तान है वह आतंक के अपराध के अड्डे के रूप में वर्तमान में विश्व में खूब नाम कमा रहा है.
आज चुनावों को देखते हुए उसी अपराध के शिकार और लगभग इसके आदी हो चुके लोगों के यहां से जाने को ” पलायन” कहकर भुनाया जा रहा है और उन राजनीतिक तत्वों द्वारा ये किया जा रहा है जो बरसों बरस से उन पीड़ितों के ही खैरखवाह के ही रूप में रहे हैं और जो सब कुछ देखकर भी अपनी आंखें मूंदकर बैठे रहे और जिस कारण यह घाव नासूर के रूप में उभरकर सामने आया है. तब और अब के पाखंड को देखते हुए राजनीतिक व्यवहार के लिए मन में यही भाव आते हैं-
” लोग जाते रहे ये लखाते रहे,
आज हमदर्दी क्यूं कर जताने लगे.”
वैसे अगर हम पलायन की इस समस्या के मूल में जाते हैं तो अपराध से भी बड़ा कारण यहां रोजगार के अभाव का होना है. तरक्की का इस क्षेत्र से दूर दूर तक भी कोई ताल्लुक नहीं है. आज भी यहां सदियों पुरानी परंपरा जड़े जमाये हैं जिसके कारण लोगों की सोच पुरानी है और आगे बढने के रास्तों पर बंदिशें लगी हैं इसलिए जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए और अपनी प्रतिभा के सही इस्तेमाल के लिए भी यहां से लोग बाहर जा रहे हैं और यही बात कैराना से सटे काँधला कस्बे के एक कारोबारी गौरव जैन द्वारा जी टीवी पर इंटरव्यू में कही गई जिसके परिवार का नाम पलायन वादियों की लिस्ट में शामिल किया गया और जिसके काँधला स्थित घर पर इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने वाले तत्वों द्वारा ” यह मकान बिकाऊ है” लिख दिया गया. गौरव जैन द्वारा साफ साफ ये कहा गया कि मैं अपने काम के कारण बाहर गया हूँ मुझे या मेरे परिवार को कोई रंगदारी की चिट्ठी नहीं मिली है.
एेसे में साफतौर पर इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने वाले और इसे वास्तविकता मानने वाले राजनीतिज्ञों की मंशा व उस मंशा के अनुसार जांच दिखा अपनी पुष्टि की मुहर लगाने वाले मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट पर ऊंगली उठना लाजिमी है. सच्चाई क्या है यहां की जनता भी जानती है और नेता भी, बस सब अपनी जिम्मेदारी से बचने के तरीके ढूंढते हैं. अपराध का सफाया और विकास ये इस क्षेत्र की मुख्य जरूरत हैं जो यहां के नेता कभी नहीं होने देंगे क्योंकि जिस दिन ये हो गया नेताओं की राजनीति की जड़ें कट जायेंगी, ये यहाँ की जनता कहती है.
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शालिनी कौशिक
एडवोकेट

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