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बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
खुशियों का बवंडर पल भर में थम गया .

चाहत थी बेटा आकर इस वंश को बढ़ाये ,
रखवाई का ही काम उल्टा सिर पे पड़ गया .

बेटा जने जो माता ये है पिता का पौरुष ,
बेटी जनम का पत्थर माँ के सिर पे बंध गया .


गर्मी चढ़ी थी आकर घर में सभी सिरों पर ,
बेडा गर्क ही जैसे उनके कुल का हो गया .

गर्दिश के दिन थे आये ऐसे उमड़-घुमड़ कर ,
बेटी का गर्द माँ को गर्दाबाद कर गया .

बेठी है मायके में ले बेटी को है रोटी ,
झेला जो माँ ने मुझको भी वो सहना पड़ गया .


न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

सदियाँ गुजर गयी हैं ज़माना बदल गया ,
बेटी का सुख रुढियों की बलि चढ़ गया .

सच्चाई ये जहाँ की देखे है ”शालिनी ”
बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया .
शालिनी कौशिक
[कौशल]

शब्दार्थ-गर्दाबाद-उजाड़ ,विनाश

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