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नारी और आदर :दूर की कौड़ी

! मेरी अभिव्यक्ति !
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रामायण में लव-कुश रामायण देखी मन विह्वल हो गया और आंसू से भीग गए अपने नयन किन्तु नहीं झुठला सकता वह सत्य जो सीता माता माँ वसुंधरा की गोद में जाते हुए कहती हैं –

”माँ ! मुझे अपनी गोद में ले लो ,इस धरती पर परीक्षा देते देते मैं थक गयी हूँ ,यहाँ नारी का आदर नहीं हो सकता .”

एक सत्य जो न केवल माता सीता ने बल्कि यहाँ जन्म लेने वाली हर नारी ने भुगता है .एक परीक्षा जो नारी को कदम कदम पर देनी पड़ती है किन्तु कोई भी परीक्षा उसे खरा साबित नहीं करती बल्कि उसके लिए आगे का मार्ग और अधिक कठिन कर देती है .

माता सीता ने जो अपराध नहीं किया उसका दंड उन्हें भुगतना पड़ा .लंकाधिपति रावन उनका हरण कर ले गया और उन्हें ढूँढने में भगवान राम को और रावन का वध करने में जो समय उन्हें लगा वे उस समय में वहां रहने के लिए बाध्य थी इसलिए ऐसे में उन्हें वहां रहने के लिए कलंकित करना पहले ही गलत कृत्य था और राजधर्म के नाम पर माता सीता का त्याग तो पूर्णतया गलत कृत्य ,क्योंकि यूँ तो माता सीता तो देवी थी इसलिए उनका त्याग तो वैसे भी असहनीय ही रहा किन्तु इस कार्य ने एक गलत परंपरा की नीव रखी क्योंकि इस कार्य ने समाज के ठेकेदारों को एक मान्य उदाहरण दे दिया जबकि यदि कोई नारी स्वयं की मर्जी से ही कहीं गयी हो तब ही इस श्रेणी में आती है ,वह महिला जो बलात हरण कर ले जाई गयी है यदि दुर्भाग्य वश उसके साथ कुछ गलत घट भी जाये तो उसका त्याग वर्जित होना चाहिए .]

किन्तु ऐसा कहाँ है औरत का एक रात कहीं और किसी के साथ रुक जाना उसकी जिंदगी के लिए विनाशकारी हो जाता है और पुरुष शादी विवाह करके बच्चे होने के बाद भी बहुत सी बार घर-बार छोड़कर भाग जाता है बरसों बरस गायब रहता है तब उसके साथ तो कोई परीक्षा का विधान नहीं है .

जो सीता ने भोगा वही अहिल्या ने भी भोगा ,इंद्र ने वेश पलटकर उनके साथ सम्भोग किया और ऋषि गौतम ने उन्हें पत्थर बनने का श्राप दे दिया ,अब यदि इस प्रसंग को हमारे समाज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो ऐसा श्राप तो नहीं दिया जाता बल्कि शक की बिना पर सीधे मौत के घाट उतार दिया जाता है .प्रेम विवाह हो या हमारे देश की संस्कृति के अनुसार किया गया विवाह कहीं भी ऐसी घटनाएँ होने से बची हुई नहीं हैं .नारी हर जगह शोषित की ही श्रेणी में हैं .उसके लिए आदर कहीं भी नहीं है .

शालिनी कौशिक

[कौशल ]

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