मीडिया आजकल क्या कर रहा है किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है किन्तु इतना साफ है कि मीडिया अपनी भूमिका का सही निर्वहन नहीं कर रहा है .सच्चाई को निष्पक्ष रूप से सबके सामने लाना मीडिया का सर्वप्रमुख कार्य है किन्तु मीडिया सच्चाई को सामने लाता है घुमा-फिरा कर .परिणाम यह होता है कि अर्थ का अनर्थ हो जाता है और समाचार जनता में भ्रम की स्थिति पैदा करता है .अभी २ दिन पहले की ही बात है लालू यादव ने राहुल गांधी की रैली में शामिल होने से इंकार किया तो समाचार प्रकाशित किया गया अमर उजाला दैनिक के मुख्य पृष्ठ ३ पर जो कि १ व् २ पेज पर विज्ञापन के कारण नंबर ३ ही था देखिये-
{राहुल की रैली में नहीं जाएंगे लालू
पटना। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मंच साझा करने में असमर्थता जाहिर की है। इसलिए वह अपनी जगह अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को 19 सितंबर को चंपारण में आयोजित राहुल की रैली में भेजेंगे। विस्तृत पेज 14 पर}
और वे राहुल गांधी के साथ मंच साझा क्यों नहीं करेंगे इसका कारण छिपाकर पेज १४ पर प्रकाशित किया गया जिसमे इसका मुख्य कारण बताया गया है और वह है लालू द्वारा राहुल गांधी के साथ मंच साझा करने के बहाने अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को राजनीति के गलियारों में लांच करना –
{राहुल के साथ मंच पर दिखेंगे राजद के युवराज
पटना (ब्यूरो)। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मंच साझा करने में असमर्थता जाहिर की है। इसलिए वह अपनी जगह अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को 19 सितंबर को चंपारण में आयोजित राहुल की रैली में भेजेंगे। हालांकि बिहार के सीएम नीतीश कुमार इस रैली में शामिल होंगे।
कहा जा रहा है कि लालू कांग्रेस उपाध्यक्ष के साथ राजद के युवराज को मंच पर दिखाना चाहते हैं। राहुल की रैली से लालू का किनारा होना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय जरूर है, लेकिन राजद का कहना है कि लालू चुनाव की घोषणा होने के बाद काफी व्यस्त हैं और यही एक मात्र वजह है, जिसके कारण वह रैली में शामिल नहीं हो पाएंगे।}
लेकिन मीडिया क्यों राहुल गांधी की प्रमुखता दिखायेगा वह तो अपने कुछ पूर्वग्रहों से ग्रस्त है और इसलिए वह राहुल गांधी को नीचे दिखाने का कोई मौका चूकना नहीं चाहता .इसलिए वह जब देखो राहुल गांधी के खिलाफ अपने चुके हुए तीर चलाता ही रहता है .
यही नहीं कि मीडिया ऐसा किसी गलतीवश करता है असल में मीडिया को अब अपना काम करना ही शायद आता नहीं है क्योंकि मीडिया को अब इंसान इंसान नज़र आता ही नहीं है अगर वह पढ़ने लिखने वाली उम्र का है तो अगर उसके साथ कोई घटना होती है तो वह समाचार में छात्र ही लिखा जायेगा चाहे घटना के वक़्त स्कूल का कोई मतलब न हो ..मुज़फ्फरनगर में घर से अपहृत एक बच्चे की हत्या का समाचार जब समाचारपत्र में आया तो उसमे उसे छात्र लिखा गया जबकि घटना शाम की थी और बच्चा घर के बाहर साइकिल चला रहा था .ऐसे ही मेरठ में एक युवक की हत्या हो गयी और वह उस वक्त अपनी स्कूटी खड़ी कर चला गया था जब शाम तक नहीं लौटा तो ध्यान दिया गया और उसकी हत्या का पता चला इसमें कॉलिज का केवल इतना मतलब कि वह मेरठ कॉलिज में पढता था बस इतने मात्र से समाचार का शीर्षक हो गया मेरठ कॉलिज के छात्र की गोली मरकर हत्या .
अब ऐसे मीडिया का क्या किया जाये इसके लिए तो ये भी नहीं कह सकते कि सुबह का भूला शाम तक घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते क्योंकि यह तो अपने घर लौटने वाला ही नहीं है .इसका तो बस एक ही चारा है हमारे पास कि इसकी गलतियों को रोज दरकिनार कर अपनी ही सुध लें .
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