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मुज़फ्फ्फरनगर में नहीं लड़कियों के मानवाधिकार

! मेरी अभिव्यक्ति !
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अभी ९ सितम्बर को मुज़फ्फरनगर के जिलाधिकारी ने जिले में बढ़ती छेड़छाड़ की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए एक बहुत ही बेहतरीन कदम उठाने के बारे में कहा था जिसे अमरउजाला ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था –
शहर के चौराहों पर रखा जाएगा मंजनू पिंजरा[अमर उजाला से साभार ]
मुजफ्फरनगर। डीएम ने कहा जिले में छेड़छाड़ की घटनाओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। शहर के सभी चौराहों पर मंजनू पिंजरा रखा जाएगा। पकड़े मंजनू को इसे में बंद किया जाएगा। यदि कोई छेड़खानी करता है तो उसकी 1090 पर शिकायत करें।
डीएम और एसएसपी की टीम ने मंगलवार जैन डिग्री कॉलेज के आसपास अभियान चलाकर आठ मंजनुओं को पकड़ा। बाद में उनके अभिभावकों को बुलाकर चेतावनी के बाद छोड़ दिया। डीएम ने बताया शहर के सभी चौराहों पर मजनूं पिंजरा रखा जाएगा। जो भी मंजनू पकड़ा जाएगा उसे इसी पिंजरे में रखा जाएगा। एसएसपी केबी सिंह ने बताया मंजनुओं को पकड़ने के लिए पूरे जिले में अभियान चलाया जा रहा है। पुलिस की गोपनीय टीम बनाकर मंजनुुओं पर नजर रखेगी। महिला थाना इंचार्ज, शहर के तीनों थानाध्यक्षों को मंजनुओं के खिलाफ अभियान चलाने के लिए कहा गया है।]
और इससे पहले कि यह अमल में आ पाता कि उठ खड़े हुए मानवधिकार संगठन और सामाजिक संगठन इसके विरोध में –
शोहदों को कैद नहीं कर पाएगा ‘मजनू पिंजरा’[अमर उजाला से साभार ]
बखेड़ा खड़ा होने पर प्रशासन का फरमान वापस
स्कूल-कालेजों के बाहर लगेंगे सीसीटीवी कैमरे
छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं बवाल और संघर्ष का रूप ले लेती हैं। डीएम ने डीआईओएस को प्रभावी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। कन्या कालेज और स्कूलों के बाहर प्रबंध समिति से वार्ता कर तत्काल सीसीटीवी कैमरे लगवाए जाएं। एसएसपी केबी सिंह को निर्देश दिया कि सादी वर्दी में महिला एवं पुरुष बल गोपनीय टीमों के साथ स्कूली क्षेत्रों पर तैनात किया जाए। पुलिस की मोबाइल टीमें वायरलेस सेट से युक्त हों, जिससे तत्काल वूमेन पावर लाइन 1090 पर कॉल ट्रांसफर की जाए। छेड़छाड़ से जुड़ी शिकायतों का निस्तारण शीघ्र किया जाएगा। महिला थाना, कोतवाली और सिविल लाइन एवं मंडी थाने के प्रभारियों की टीमें गठित कर दी गई हैं।
अमर उजाला ब्यूरो
मुजफ्फरनगर। शहर के चौराहों पर मजनू पिंजरा रखकर शोहदों पर अंकुश लगाने का प्रशासन का फैसला विवादों में घिर गया है। छेड़छाड़ की घटनाओं पर रोकथाम के लिए मजनुओं के खिलाफ पुलिस का धरपकड़ अभियान चल रहा है। मंगलवार को प्रशासन ने मजनू पिंजरा चौराहों पर रखने का फरमान जारी किया था। इसे लेकर मानवाधिकार और सामाजिक संगठनों ने बखेड़ा खड़ा कर दिया।
महिलाओं और छात्राओं से छेड़छाड़ की घटना गंभीर समस्या है। फिलहाल डीएम निखिल चंद्र शुक्ला के निर्देश पर जिलेभर में मजनुओं की धरपकड़ की जा रही है, ताकि स्कूल-कालेजों के बाहर बेटियों को सुरक्षा का माहौल मिल सके। इसी बीच पुलिस प्रशासन का मजनू का पिंजरा शहर के चौराहों पर रखे जाने का निर्णय विवादों में घिर गया है। मामला मीडिया में उछलने के बाद लखनऊ तक हलचल मच गई। बॉलीवुड की फिल्मों और सर्कस में लोहे के ऐसे पिंजरे नजर आते हैं। जैसे ही मानवाधिकार और सामाजिक संगठनों में पिंजरे में शोहदों को कैद कर चौराहे पर शर्मसार करने की प्रशासन की मंशा पर चर्चा हुई तो मामले में पेंच फंस गया। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने प्रशासन के निर्णय पर उंगली उठाते हुए लखनऊ तक शिकायतें भेज दीं। इनका कहना था कि छेड़छाड़ की घटनाओं को रोकने के लिए पिंजरे का इस्तेमाल मानवीय रूप से अनुचित है। मानवाधिकार मामलों के पैरवी करने वाले एडवोकेट मनेश गुप्ता कहते हैं कि कानून में छेड़छाड़ के दोषियों के खिलाफ तर्कसंगत कार्रवाई का प्रावधान है, ऐसे में चौराहों पर पिंजरों का कोई औचित्य नहीं है। पिंजरे का मामला शासन तक गूंजा तो प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। डीएम निखिल चंद्र शुक्ला ने सूचना विभाग के जरिये भेजी विज्ञप्ति में कहा है कि मजनू के पिंजरे का इस्तेमाल हकीकत में नहीं किया जाना था, बल्कि मजनुओं में प्रशासन का भय व्याप्त करना था। चरथावल के हैबतपुर में बस में स्कूल जाती लड़कियों से छेड़छाड़ की घटना के बाद डीएम ने सभी एसडीएम और सीओ को इस बारे में अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं। कहा कि देहात के बस स्टैंड पर स्कूल के समय मौजूद असामाजिक तत्वों और शोहदों के खिलाफ चेकिंग कर निरोधात्मक कार्रवाई की जाए।
सादी वर्दी में पुलिसकर्मियों को भी तैनात किया जाए। छेड़छाड़ की घटनाओं पर एसएसपी के साथ पाक्षिक समीक्षा बैठक की जाएगी।

जैसे कि ये पिंजरे सामान्य लड़कों के लिए रखा जा रहा हो .वे लड़के जो लड़कियों को परेशान करने के लिए उन्हें अभद्र तरीकों से छेड़ने के लिए सड़कों पर घंटों खड़े रहते हैं ,दुकानों के स्लैब पर बैठे रहते हैं ,गलियों में और वो भी तंग गलियों में मोबाइल लिए अश्लील गाने बजाते रहते हैं ,जिनके कारण कभी लड़की के माँ-बाप तो कभी भाई को अपने पास समय न होते हुए भी उसे स्कूल कॉलेज ,ट्यूशन पर छोड़ने के लिए आना पड़ता है जबकि वह स्वयं जा सकती है और कभी कभी या कहूँ तो ज्यादातर इन शोहदों के द्वारा की गयी हरकत का विरोध करने पर हिंसा का शिकार भी होना पड़ता है जो अभी हैबतपुर [चरथावल ]में हुआ जहाँ लड़कियां अब कॉलेज जाने का भी साहस भी नहीं कर पा रही हैं –
स्कूल जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही छात्राएं
हैबतपुर बवाल के बाद गांव में तनाव, पुलिस-पीएसी डटी रही
अमर उजाला ब्यूरो
चरथावल। हैबतपुर में हुए बवाल के बाद गांव में तनावपूर्ण शांति हैं, हालांकि छात्राएं स्कूल, कालेज जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही। मामले की संवेदनशीलता को देख गांव में पुलिस और पीएसी डटी रही। उधर, दोपहर में कसबे के बस स्टैंड पर छात्रों के गुटों में मारपीट होने का शोर मचने से माहौल गर्माया।
हैबतपुर के भट्ठे पर छात्राओं को बस से खींचने के मामले में हालात नियंत्रण में लेकिन तनावपूर्ण हैं। बस से खींचने की घटना से छात्राएं अभी भी कालेज जाने से डर रही हैं, उनके परिजन भी उन्हें कालेज भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। देहात क्षेत्रों से पढ़ने के लिए आने वाली छात्राएं भी कम ही कालेज आ रही हैं। हैबतपुर से यह संख्या तो बहुत कम है।
हालांकि घटना की संवेदनशीलता तो देखते हुए पुलिस प्रशासन गंभीर है और सीओ सदर अकील अहमद, एसओ आनंद मिश्रा पूरे दिन पुलिस बल के साथ गांव में डेरा डाले रहे। पीएसी भी यहां डेरा डाले है। कथित फर्जी नामजदगी के कारण कोई भी व्यक्ति सच बोलने को तैयार नहीं है। बुधवार को कस्बे के बस स्टैंड पर दोपहर में छात्रों के दो गुटों में मारपीट हो गई, इसे लेकर शोर मच गया कि हैबतपुर के छात्र आपस में भिड़ गए हैं। सूचना पर पुलिस ने बस स्टैंड पर दबिश दी, लेकिन तब तक छात्र रफूचक्कर हो चुके थे। हैबतपुर प्रकरण से बड़े नेताआें ने खुद को दूर रखे हुए हैं हालांकि अलग-अलग दलों से जुडे़ दोनों समुदाय के नेता आपसी सद्भाव बनाने की अपील कर रहे हैं।]
उनके लिए मानवाधिकार व् सामाजिक संगठन उठें हैं क्या लड़कियों के कोई मानवाधिकार नहीं हैं ,क्या उन्हें संविधान द्वारा दिए गए गरिमा से जीने का अधिकार नहीं मिले हैं जो उन्हें ये सब झेलने को विवश होना पड़ता है .तब कहाँ होते हैं ये मानवाधिकार व् सामाजिक संगठन जब एक लड़की ऐसे छेड़छाड़ का शिकार होकर समाज में अपमानित होती है .तब तो ये संगठन सड़कों हों तो सरक लेते हैं ,बसों में हों तो आँखें बंद कर लेते हैं .क्या ऐसे लड़के जब सड़कों पर समय बिताते ही हैं तो अगर पिंजरों में बैठ बिता लेंगे तो उनके अधिकार पर चोट पहुंचेंगी या फिर समाज के माहौल में सुधार .कानून ने लड़कियों की सुरक्षा के लिए बहुत से उपाय किये हैं किन्तु मनीष गुप्ता जी को भी ये तो जानना ही चाहिए कि कानूनी प्रक्रिया में बहुत देर लगती है और हर लड़की व् उसके घर वाले कानून का दरवाजा खटकना उचित नहीं समझते क्योंकि बहुत सी बार उन्हें वहां भी निर्दोष होते हुए अपमान के घूँट पीने पड़ते हैं और तब कोई मानवाधिकार संगठन या सामाजिक संगठन उनकी मदद के लिए वहां खड़ा नहीं होता .ऐसे में तो ये ही कहना होगा कि मुज़फ्फरनगर हमेशा की तरह अपराध के ही साथ है और लड़कियों के लिए तो यह बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि –

मुज़फ्फरनगर रखता हर बात में है शान
मानव हैं इनके लड़के ,लड़कियों में न जान ,
सताना लड़कियों को अधिकार लड़कों का
घंटों सड़कों पर ये कर सकें बबाल,
इनकी वजह से रहती हैं लड़कियां पिंजरों में
ये अगर रहें पिंजरे में ये इनका है अपमान .

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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