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आज एकाएक एक शेर याद आ गया .कुछ यूँ थी उस शेर की पंक्तियाँ –
”कैंची से चिरागों की लौ काटने वालों ,
सूरज की तपिश को रोक नहीं सकते .
तुम फूल को चुटकी से मसल सकते हो लेकिन
फूल की खुशबू को समेट नहीं सकते .”
सियासत आदमी से जो न कहलवादे मतलब सब कुछ कहलवा सकती है सही शब्दों में कहूँ तो उगलवा सकती है और ऐसा ही हो गया जब प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू में जाने माने कॉंग्रेसी दिग्गज गिरधारी लाल डोगरा के जन्म शताब्दी समारोह में गिरधारी जी के २६ बार बजट पेश करने पर अपने विचार प्रस्तुत करते वक्त अपने मुख कमल से जो उद्गार व्यक्त किये वे उनके न चाहते हुए भी उस सच्चाई को सबके सामने ला रहे थे जिससे भाजपाई और स्वयं प्रधानमंत्री भी आज तक बचते आ रहे थे , वे विचार कुछ यूँ थे –
”यह तभी संभव होता है जब आपकी व्यापक स्वीकार्यता हो .”
और ये वे शब्द हैं जिससे आने वाले वक्त में कॉंग्रेसियों को स्वयं के हाईकमान को लेकर एक बार फिर गर्व करने का अवसर मिल गया क्योंकि सभी जानते हैं कि नेहरू गांधी परिवार ही देश पर शासन सत्ता को सबसे लम्बे समय तक सँभालने वाला परिवार है और आज उस पर उनके धुर विरोधी भाजपाई प्रधानमंत्री मोदी की मुहर भी लग गयी भले ही वे सीधे न स्वीकारें पर अप्रत्यक्ष रूप से सच्चाई वे जानते हैं यह आज साबित हो ही गया .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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