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”किसने ये जहर घोला है हवाओं में ,
किसने खोदी हैं कब्रें प्यार की .”
ये सवाल आज वेस्ट यू.पी. के स्थानीय निवासियों की जुबान पर भी है और दिल में भी .ईद हो या दीवाली यहाँ की जनता मिल-जुल कर मनाती आई है .ईद की सिवईयाँ हो या दीवाली की मिठाई अपना स्वाद ही खो देती हैं जब उसमे हिन्दू-मुस्लिम के प्रेम की मिठास न मिली हो और इस बार ईद पहली बार उसी प्रेम का अभाव में मनाई जाएगी ऐसा महसूस हो रहा है . कारण केवल एक है यहाँ के बाज़ारों में इन दिनों हिन्दुओं की दुकानों पर मुसलमान भाई-बहनों की भीड़ का अभाव .बाजार में हिन्दुओं की दुकानें अधिक हैं इसलिए यहाँ लगभग सुनसान की स्थिति यह साफ तौर पर बता रही है कि अभी हाल में हुए दंगों ने सदियों के आपसी प्रेम सद्भाव को चोट तो अवश्य पहुंचाई है और ये चोट कभी भरेगी या नासूर बनकर रिसेगी अभी इस सम्बन्ध में कुछ भी कहना मुश्किल है क्योंकि अभी राजनीतिक पहल इसे तोड़ने का ही काम करती दिखाई दे रही है और यह दुखद है क्योंकि जिनके हाथों में देश -प्रदेश की बागडोर है उनका दायित्व ये बनता है कि वे इस प्रेम को मीठे -ठन्डे जल से सींचे न कि उष्ण पानी से .ये समय राजनीतिक रोटियां सेकने का नहीं है बल्कि जनता को उनका प्राचीन आपसी प्रेम से भरा इतिहास दिखाने का है .ऐसे में इन पंक्तियों को ही शिरोधार्य करना सर्वाधिक समयोचित कदम होगा –
”खुदा किसी का राम किसी का ,
बाँट न इनको पाले में ,
तू मस्जिद में पूजा कर ,
मैं सिज़दा करूँ शिवाले में ,
जिस धारा में प्यार मुहब्बत
वह धारा ही गंगा है ,
और अन्यथा क्या अंतर
वह यहाँ गिरी या नाले में .”
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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