! मेरी अभिव्यक्ति !
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दुश्मन न बनो अपने ,ये बात जान लो ,
कुदरत को खेल खुद से ,न बर्दाश्त जान लो .
चादर से बाहर अपने ,न पैर पसारो,
बिगड़ी जो इसकी सूरत ,देगी घात जान लो .
निशदिन ये पेड़ काट ,बनाते इमारते ,
सीमा सहन की तोड़ ,रौंदेगी गात जान लो .
शहंशाह बन पा रहे ,जो आज चांदनी ,
करके ख़तम हवस को ,देगी रात जान लो .
जो बोओगे काटोगे वही कहती ”शालिनी ”
कुदरत अगर ये बिगड़ी ,मिले मौत जान लो .
शालिनी कौशिक
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