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आज इस दिल को जरा अश्कों से नहलाने दो .

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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हरिश्चंद्र ”नाज़” के ये शब्द आज के एक समाचार पर ध्यान जाते ही मेरे जहन में उभर आये ,शब्द कुछ यूँ थे –
”यूँ गुल खिले हैं बाग़ में ख़ारों के आस-पास ,
जैसे कि गर्दिशें हों सितारों के आस-पास .
रौनक चमन में आ गयी लेकिन न भूलना
शायद खिज़ा छुपी हो बहारों के आस-पास .”
और समाचार कुछ यूँ था –
”महंगाई पर काबू पाना सरकार की अहम उपलब्धि -जेटली ”
और महंगाई पर काबू पाना ऐसा ही गुल है जो वर्तमान सरकार जैसी खार के पास खिलने की कोशिश में है किन्तु जैसे कि खार में गुल नहीं खिलते ऐसे ही वर्तमान सरकार द्वारा महंगाई पर काबू जैसे गुल खिलाने की आशा ही व्यर्थ है और अरुण जेटली जी को महंगाई काबू में दिख रही है वह महंगाई जो इस वक्त पिछली यू.पी.ए.सरकार की अपेक्षा भी दिनों दिन तरक्की की राहों पर जा रही है .अगर हम अपनी रोज़मर्रा की चीज़ों का ही आकलन करें तो हमें साफ नज़र आता है कि महंगाई की स्थिति क्या है -अरहर की दाल जो इस सरकार से पहले हमें ७२ रूपये किलो मिल रही थी वह अब १०० रूपये किलो से ऊपर जा रही है .सब्जियां जो पहले कम भाव पर मिलती दिख जाती थी अब कोई भी कम दाम में नहीं मिलती .प्याज़ १२ रूपये किलो की जगह अब २५ रूपये किलो मिल रहा है .फलों में चीकू २० की जगह ४० के भाव में बिक रहा है .रही पेट्रोल -डीज़ल की बात तो जो फायदा इसका अपनी गाड़ी इस्तेमाल करने वालों को हुआ है वो फायदा आम जनता को नहीं क्योंकि किरायों में कहीं कोई कमी नहीं हुई है .
देखा जाये तो मोदी सरकार अभी तक अपने हर वायदे पर खोटी ही साबित हुई है क्योंकि काला धन लाने का वायदा इन्होने खुद ही तोड़ दिया ,अच्छे दिन लाने का इनका इरादा प्रकृति ने तोड़ दिया और जितने किसानों को इनके कार्यकाल के आरम्भ में ही आत्महत्या को गले लगाना पड़ गया उतना आज तक किसी सरकार के कार्यकाल में नहीं करना पड़ा विशेषकर पश्चिमी यूपी के किसानों को .हाँ इतना अवश्य है कि इस सरकार ने इस तरह की परिस्थितियां शायद पहले ही भांप ली थी और इसलिए धारा ३०९ द्वारा घोषित आत्महत्या के अपराध को अपराध की श्रेणी से अलग किये जाने की पहल कर ली थी .ऐसे में जेटली जी द्वारा महंगाई कम होने का बखान और उसका श्रेय मोदी सरकार को देना ऐसे ही कहा जायेगा जैसे ये सब एक झूठ की रात का चाँद ही हो किन्तु अभी इस स्थिति पर अफ़सोस ही किया जा सकता है और आगे आने वाली सरकार से उम्मीद .जो कि कभी भी पूरी होनी मुश्किल है क्योंकि हर सरकार बनने से पहले आम जनता की होती है और बाद में पूंजीपतियों की .इसलिए ए .बी.भारतीय के शब्दों में बस यही कहा जा सकता है –
”झूठ की रात के हर चाँद को ढल जाने दो ,
सच के सूरज को अंधेरों से निकल आने दो ,
धुल कितने ही अज़ाबों की जमीं है इस पर
आज इस दिल को ज़रा अश्कों से नहलाने दो .”

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

[PUBLISHED IN JANVANI {PATHAKVANI }ON 25.MAY.2015 ]

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