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मुस्लिम विधि में वसीयत

! मेरी अभिव्यक्ति !
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मुस्लिम विधि में वसीयत
वसीयत अर्थात इच्छा पत्र एक मुस्लिम  द्वारा अपनी संपत्ति सम्बन्धी बंदोबस्त किये जाने के इरादे की कानूनी घोषणा है जो उसकी मृत्यु के बाद प्रभावशील होती हैऔर इस दस्तावेज को कानूनी भाषा में वसीयत कहा जाता है।
वसीयत करने का हक़दार कौन-
[१] स्वस्थचित्त
[२] वयस्क [भारतीय वयस्कता अधिनियम १८७५ के अंतर्गत ]
[३] मुस्लिम

कैसी हो वसीयत –
वसीयत लिखित व् मौखिक दोनों तरह की हो सकती है।

वसीयत की आवश्यकता –
[अ] वसीयतकर्ता वसीयत करने के लिए सक्षम होना चाहिए।
[ब] वसीयतदार वसीयत में प्राप्त हक़ को पाने को सक्षम हो।
[स] वसीयत की विषयवस्तु मान्य हो।
[द ]परिसीमा तक हो।

वसीयतकर्ता के लिए आवश्यकताएं –
[१] भारतीय वयस्कता अधिनियम १८७५ की धारा ३ के अनुसार वयस्कता की उम्र १८ वर्ष हो। न्यायालयी संरक्षक हो तब वसीयतकर्ता की उम्र २१ वर्ष हो।
[२] स्वस्थचित्त होना ज़रूरी है।
[३] वसीयतकर्ता वसीयत किये जाते समय मुस्लिम होना चाहिए किन्तु इसमें भी मुस्लिम विधि कहती है कि यदि वसीयतकर्ता मुसलमान ने वसीयत करने के बाद धर्म त्याग दिया है और वह मरते समय मुसलमान न हो तब ऐसी वसीयत –
[अ] मलिकी विधि में अमान्य है।
[ब] हनफ़ी विधि में मान्य होगी।

और जब वसीयत करने वाला आत्महत्या कर ले तब प्रभाव –
[अ] सुन्नी विधि में मान्य है।
[ब] शिया विधि में अमान्य है।

वसीयतदार –
वसीयत से विषयवस्तु पाने वाले को वसीयतदार कहते है। कोई भी सक्षम वसीयतदार हो सकता है। रोगी ,स्त्री ,पुरुष इसमें से प्रत्येक सक्षम है।

वसीयत की परिसीमा –
[१] कोई भी मुसलमान अपनी कुल संपत्ति के एक -तिहाई से अधिक की वसीयत नहीं कर सकेगा। 
[२] वह अपने उत्तराधिकारियों को वसीयत नहीं कर सकेगा।
[३] किसी इस्लाम विरुद्ध प्रयोजन के लिए वसीयत न कर सकेगा।

*किसी ऐसे व्यक्ति को वसीयत जो मुसलमान न हो पूर्णतः मान्य है।
*यदि वसीयत दानार्थ उद्देश्य के लिए की गयी है पूर्णतः मान्य है।
*हत्यारे को की गयी वसीयत
[१] शिया विधि में यदि हत्यारे को वसीयत की गयी है और हत्यारे ने जिसके पक्ष में वसीयत की गयी है ने हत्या आशय रहित की है तो मान्य है और यदि उसने आशय सहित हत्या की है तो वह वसीयत अमान्य है।
[२] सुन्नी विधि में हत्यारे के पक्ष में यदि कोई वसीयत की गयी है और हत्यारे ने वह हत्या भले ही आशय सहित की हो या आशय रहित की हो ,वसीयत हर हाल में अमान्य है।
*अजन्मे को की गयी वसीयत के मामले में –
[१] शिया विधि में यदि अजन्मा जिसके पक्ष में वसीयत की गयी है वह वसीयतकर्ता की मृत्यु के समय जीवित है तब इसे मान्य समझा जायेगा।
[२] सुन्नी विधि में जिस अजन्मे के पक्ष में वसीयत की गयी है और वह अजन्मा वसीयत करने के दिनांक से ६ मास के भीतर जन्म ले ले तब वह वसीयत अमान्य नहीं होगी।

शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

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