! मेरी अभिव्यक्ति !
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मुस्कुराना हर किसी के लिए , ज़रूरी तो नहीं ,
खिलखिलाना हर किसी के लिए , ज़रूरी तो नहीं ,
ज़िंदगी में जब भरे हों गम ही गम
भूलकर हम जियें ऐसे ,ज़रूरी तो नहीं .
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ख्वाब देखा किये थे बचपन से ,
आज टूटकर हैं वे बिखरे हुए ,
उनकी कब्रों पे खड़े होकर हम
तालियां मिल बजाएं ,ज़रूरी तो नहीं .
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कामयाबी की रखी हसरतें हमने ,
मेहनतें उस कदर नहीं कर सके ,
अपने हालात खुद ही बिगाड़े हैं
आंसूं भी अब बहाएं ,ज़रूरी तो नहीं .
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दिल था अपना मासूम बच्चे सा ,
न समझा हमीं खता कर रहे ,
आज मौजें करी कल का सोचा नहीं
अब भी परवाह करें ,ज़रूरी तो नहीं .
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रहते वक़्त कोई जब सोता रहे ,
हाथ आये मौके को खोता रहे ,
फिर तो रोना पड़े उसे उम्र-भर
लापरवाह सब ” शालिनी” से , ज़रूरी तो नहीं .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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