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उच्चतम न्यायालय की खंडपीठ का कन्याभ्रूण हत्या को लेकर सुनवाई का समय निश्चित करना और लिंग अनुपात में आ रही कमी को लेकर चिंता जताना सराहनीय पहल है .आज कन्या भ्रूण हत्या जोरों पर है और लिंग-जाँच पर कानूनी रूप से प्रतिबन्ध लगाया जाना और इसे अवैध व् गैरकानूनी घोषित किया जाना भी इसे नहीं रोक पाया है और उच्चतम न्यायालय को इसे लेकर सरकार से कहना पड़ गया है –
‘Laws to stop female foeticide have failed’: SC to Indian govt, states
और ऐसा तब है जबकि भारत में इसे लेकर १९९४ से कानून है और प्रसवपूर्व लिंग जाँच पर सजा व् जुर्माने का प्रावधान है .
पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (PCPNDT) अधिनियम, 1994 भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने रोकने के लिए भारत की संसद द्वारा पारित एकसंघीय कानून है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक ‘पीएनडीटी’ एक्ट 1996, के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले डाक्टर, लैब कर्मी को तीन से पांच साल सजा और 10 से 50 हजार जुर्माने की सजा का प्रावधान है।[1]
कानून होते हुए देश में कन्या भ्रूण हत्या में वृद्धि नारी जाति के अनुपात में कमी आने के कारण तो चिंता का विषय है ही यह समूची सभ्यता के डगमगाने की भी स्थिति है और इसके लिए देश में जनता के मन में कानून का डर होना ज़रूरी है क्योंकि ऐसा सोचना कि जनता इस कानून को नहीं जानती ,गलत होगा वह तो इन्हें अल्ट्रासाउंड केंद्र पर जाते ही पता चल जाता है किन्तु अपने सिर से लड़की का बोझ उतारने को ये कानून का उल्लंघन करने से भी बाज नहीं आते और यह दुस्साहस इनमे भरते हैं अल्ट्रासाउंड सेंटर चलाने वाले जो स्वयं के हाथों में कानून को खिलौना समझते हैं और अपनी बहादुरी दिखाकर कन्या का जीवन इस दुनिया में आने से पहले ही समाप्त कर देते हैं .इसलिए इस सम्बन्ध में मुकदमों की सुनवाई में शीघ्रता लाने के साथ साथ कानून का डर भी जनता के दिलो-दिमाग पर हावी करना ही होगा तभी इस हत्या को रोकना संभव हो पायेगा .
शालिनी कौशिक
[ कानूनी ज्ञान ]
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