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वोट देना जरूरी करने वाला पहला राज्य बना गुजरात |
भारतीय संविधान का अनुच्छेद २१ यह उपबंधित करता है कि ”किसी व्यक्ति को उसके प्राण और दैहिक स्वाधीनता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा ,अन्यथा नहीं .”
इस प्रकार प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार सभी अधिकारों में श्रेष्ठ है और अनुच्छेद २१ इसी अधिकार को संरक्षण प्रदान करता है .
यह अधिकार व्यक्ति को न केवल जीने का अधिकार देता है वरन मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है .फ्रेंसिस कोरेली बनाम भारत संघ ए.आई.आर .१९८१ एस.सी.७४६ में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुछहद २१ के अधीन प्राण शब्द से तात्पर्य पशुवत जीवन से नहीं वरन मानव जीवन से है और इसमें मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार सम्मिलित है और इसी मानवीय गरिमा को मद्देनज़र रखते हुए उच्चतम न्यायालय ने प्रगति वर्गीज़ बनाम सिरिल जॉर्ज वर्गीज़ ए.आई.आर. १९९७ एस.सी.३४९ के मामले में यह अभिनिर्धारित किया कि भारतीय तलाक अधिनियम १८६९ की धारा १० ईसाई पत्नी को ऐसे व्यक्ति के साथ रहने के लिए विवश करती है जिससे वह घृणा करती है .जिसने उसके साथ क्रूरता का व्यवहार करके उसे त्याग दिया था ऐसा जीवन पशुवत जीवन है .यह ऐसे विवाह को विच्छेद करने के अधिकार को इंकार करता है जो विवाह असुधार्य टूट गया है .विवाह विच्छेद करने के अधिकार को इंकार करना अनुच्छेद २१ के अधीन प्राप्त प्राण के अधिकार का उल्लंघन है .
इसी तरह आज गुजरात में पारित ”गुजरात स्थानीय निकाय कानून विधेयक 2009” है जो वर्तमान परिस्थितियों में प्रत्येक नागरिक को वोट डालना अनिवार्य घोषित करता है .वोट डालने का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जो लोकतंत्र की मजबूती के लिए है किन्तु हमारे देश की परिस्थितियों में यह अनिवार्य होना गलत है क्योंकि उम्मीदवार बहुत सी बार जनता की पसंद के नहीं होते और उसका कारण भी है वह यह कि वे वोट लेने तो आते हैं किन्तु उसके बाद वे जनता के हित व् आकांक्षाओं को दरकिनार कर देते हैं ऐसे में किसी को वोट दिया जाना अनिवार्य करना ऐसे ही है जैसे उससे साँस लेने का ही अधिकार छीना जा रहा हो .यह जनता से संविधान में दिए गए जीने के अधिकार को छीनना ही है कि कोई उम्मीदवार पसंद हो या न हो वोट ज़रूर दो और ऐसा तब तो कहा ही जायेगा जब यहाँ पर उम्मीदवार को वापस बुलाने का अधिकार जनता को नहीं दिया गया हो .
इसलिए मतदान को अनिवार्य बनाने के कर्तव्य के साथ उम्मीदवार को वापस बुलाने का अधिकार भी जनता को मिलना ही चाहिए .आखिर जनता के यदि कर्तव्य बढ़ाये जा रहे हैं तो सरकार के कर्तव्य भी तो बढ़ने चाहियें तभी तो सच्चे लोकतंत्र के दर्शन संभव होंगे .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
[कानूनी ज्ञान ]
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