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चिंता – चिता सम मानव की खातिर ,

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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मिटा देती है जीवन का
समस्त अस्तित्व चिंताएं ,
ये आ जाती हरेक मन में
बिना हम सबके बुलाये ,
सुकून का कोई भी पल
ये हम पर रहने न देती ,
तड़पने की टीस भरकर
ये हमको तोहफे हैं देती ,
नहीं बच सकते हम इनसे
नहीं कर सकते इनको दूर ,
ये तोड़ें स्वाभिमान सबका
ये सबकी खुशियां करती दूर ,
कही जाती है ये चिंता
चिता सम मानव की खातिर ,
घिरा जैसे कोई इनसे
हुआ शमशान में हाज़िर .

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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