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मुल्क से बढ़कर न खुद को समझें हम,

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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”मुख्तलिफ ख्यालात भले रखते हों ,मुल्क से बढ़कर न खुद को समझें हम,
बेहतरी हो जिसमे अवाम की अपनी ,ऐसे क़दमों को बेहतर समझें हम.
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है ये चाहत तरक्की की राहें आप और हम मिलके पार करें ,
जो सुकूँ साथ मिलके चलने में इस हकीक़त को ज़रा समझें हम .
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कभी हम एक साथ रहते थे ,रहते हैं आज जुदा थोड़े से ,
अपनी आपस की गलतफहमी को थोड़ी जज़्बाती भूल समझें हम .
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देखकर आंगन में खड़ी दीवारें आयेंगें तोड़ने हमें दुश्मन ,
ऐसे दुश्मन की गहरी चालों को अपने हक में कभी न समझें हम .
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न कभी अपने हैं न अपने कभी हो सकते ,
पडोसी मुल्कों की फितरत को खुलके समझें हम .
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कहे ये ”शालिनी” मिल बैठ मसले सुलझा लें ,
अपने अपनों की मोहब्बत को अगर समझें हम .
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शालिनी कौशिक
[ कौशल ]

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