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लखनऊ की निर्भया की कहानी, पिता की जुबानी;ये है उत्तर प्रदेश की हवा सुहानी

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लखनऊ की निर्भया की कहानी, पिता की जुबानी

विवेक त्रिपाठी

शनिवार, 19 जुलाई 2014

अमर उजाला, लखनऊ

Updated @ 11:44 AM IST

मोहनलालगंज कोतवाली में बैठे उस दुबले-पतले शख्स का शरीर कांप रहा था। चेहरा दर्द, चिंता, उलझनों और अबूझ सवालों से बोझिल हो चुका था। मन कहीं खोया हुआ था।

रह-रहकर आंखें भीग जाती थीं। रुलाई रोकने की कोशिश में कई बार चेहरा दोनों हथेलियों से ढक लिया। डीआईजी नवनीत सिकेरा ने उनसे बातचीत शुरू की तो आंखों से आंसुओं का सैलाब निकल गया। बोले, ‘ऐसा क्यों हो गया?’

यह शख्स बलसिंहखेड़ा प्राथमिक विद्यालय में दरिंदगी की शिकार युवती के पिता हैं। उन्होंने बताया कि बेटी हिम्मत हारने वाली नहीं थी। छह साल पहले पति की मौत के बाद से वह अकेले ही बच्चों को संभाल रही थी। बोले-ससुरालवालों ने भी मुंह मोड़ लिया।


बेटी के लिए जिंदगी का एक-एक दिन बड़ा मुश्किल था। फोन पर वह अपनी तकलीफों का जिक्र करती तो कलेजा मुंह में आ जाता।

अक्सर वह बेटी से सबकुछ छोड़कर घर आने की बात कहते थे, तो बेटी उनसे सिर्फ जमाने से लड़ने का हौसला और आशीर्वाद मांगती थी।

कहती थी, ‘कुछ सपने हैं, जिन्हें पूरा करना है।’

बातचीत के दौरान जब लहूलुहान बेटी की जीजिविषा के बारे में चर्चा शुरू हुई तो उन्होंने बताया कि बचपन से ही बहुत जुझारू थी। बड़ी होने के नाते उस पर जिम्मेदारियां ज्यादा थीं।

विपरीत परिस्थितियों में घबराने के बजाए वह हिम्मत से काम लेती थी। उन्होंने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए बेटी की शादी जल्दी कर दी थी।

उसने इंटर तक की पढ़ाई की थी। पिता ने बताया कि दो माह पूर्व परिवार में एक शादी के सिलसिले में वह घर आई थी। इसके बाद से उससे सिर्फ फोन पर ही बातचीत हो रही थी।

युवती के पिता ने बताया कि वह देवरिया में शिक्षण कार्य करते हैं। युवती उनके तीन बच्चों में बड़ी थी। उसकी शादी 15 साल पहले देवरिया में ही हुई थी।

युवक राजधानी के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में संविदा पर नौकरी करता था। उसके 13 साल की बेटी और छह साल का बेटा है। दामाद की किडनी खराब थीं। बेटी ने अपनी एक किडनी पति को दे दी थी।

छह साल पहले दामाद की मौत हो गई। उसकी जगह बेटी को अस्पताल में नौकरी दे दी गई। वह दोनों बच्चों के साथ किराए के मकान में रहती थी।

उन्होंने बताया कि बृहस्पतिवार दोपहर बेटी के घर न आने की जानकारी पाकर वह राजधानी पहुंचे। देर रात बेटी के साथ हुई हैवानियत की जानकारी मिली तो सदमा सा लग गया।

थाना में बैठे युवती के पिता ने नाती-नातिन का हालचाल लेने के लिए फोन लगाया तो माहौल गमगीन हो गया। नातिन की आवाज सुनते ही उनका गला भर आया।

बस मुंह से यही निकला, ‘गुड़िया तुम ठीक हो। कोई परेशानी तो नहीं।’ इसके बाद आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। उनकी यह हालत देखकर डीआईजी भी भावुक हो गए।

लखनऊ के मोहनलाल गंज में गैंगरेप के बाद जान गंवाने वाली युवती के गांव के लोग पूरे घटनाक्रम को लेकर अवाक हैं।

देवरिया जिले के गौरीबाजार क्षेत्र के इस गांव में शुक्रवार सुबह घटना का पता चला तो हर कोई सन्न रह गया। गांव के लोगों ने बताया कि पांच साल पहले बीमारी से पति की मौत हो जाने के बाद मृतक आश्रित के रूप में उसे लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई में नौकरी मिल गई थी। वही पूरे घर का खर्च चलाती थी।

लखनऊ में ही बेटे और बेटी की पढ़ाई कराने के कारण, उसका गांव आना कम होता था। गांव वालों की चर्चा में दोनों बच्चों के भविष्य को लेकर भी सवाल उठाए जाते रहे।][अमर उजाला से साभार ]


अभी दो दिन पहले ही ये समाचार समाचार-पत्रों की सुर्खियां बना हुआ था और बता रहा था उत्तर प्रदेश के बिगड़ते हुए हालात की बदहवास दास्ताँ .एक तरफ महिलाओं के साथ उत्तर प्रदेश में दरिंदगी का कहर ज़ारी है और दूसरी तरफ कोई इसे मोबाईल और कोई नारी के रहन सहन से जोड़ रहा है .भला यहाँ बताया जाये कि एक महिला जो कि दो बच्चों की माँ है उसके साथ ऐसी क्रूरता की स्थिति क्यूँ नज़र आती है जबकि वह न तो कोई उछ्र्न्खिलता का जीवन अपनाती है और न ही कोई आधनिकता की ऐसी वस्तु वेशभूषा जिसके कारण आजके कथित बुद्धिजीवी लोग उसे इस अपराध की शिकार होना ज़रूरी करार देते हैं ?यही नहीं अगर ऐसे में उत्तर प्रदेश की सरकार यह कहती है कि यहाँ स्थिति ठीक है तो फिर क्या ये ही ठीक स्थिति कही जाएगी कि नारी हर पल हर घडी डरकर सहमकर अपनी ज़िंदगी की राहें तय करे .

ऐसे में बस नारी मन तड़प उठता है और बस यही कहता है –

जुर्म मेरा जहाँ में इतना बन नारी मैं जन्म पा गयी ,

जुर्रत पर मेरी इतनी सी जुल्मी दुनिया ज़ब्र पे आ गयी .

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जब्रन मुझपर हुक्म चलकर जहाँगीर ये बनते फिरते ,

जांनिसार ये फितरत मेरी जानशीन इन्हें बना गयी .

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जूरी बनकर करे ज़ोरडम घर की मुझे जीनत बतलाएं ,

जेबी बनाकर जादूगरी ये जौहर मुझसे खूब करा गयी .

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जिस्म से जिससे जिनगी पाते जिनाकार उसके बन जाएँ ,

इनकी जनावर करतूतें ही ज़हरी बनकर मुझे खा गयी .

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जांबाजी है वहीँ पे जायज़ जाहिली न समझी जाये ,

जाहिर इनकी जुल्मी हरकतें ज्वालामुखी हैं मुझे बना गयी .

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बहुत सहा है नहीं सहूँगी ,ज़ोर जुल्म न झेलूंगी ,

दामिनी की मूक शहादत ”शालिनी”को राह दिखा गयी .


शालिनी कौशिक

[कौशल ]


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