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औरत को जूती पैर की ही माने आदमी

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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औरत पे ज़ुल्म हो रहे कर रहा आदमी

सच्चाई को कुबूलना ये चाहते नहीं ,

गैरों के कंधे थामकर बन्दूक चलना

ये कर रहे हैं काम मगर मानते नहीं !

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औरत को जूती पैर की ही माने आदमी

सम्मान देने रोग मान पालते नहीं ,

ये चाहें इसपे बस हुक्म चलाना

करना भला इसका कभी विचारते नहीं !

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औरत लुटा दे मर्द पर भले ही ज़िंदगी

वे रहते हैं कभी किसी मुगालते नहीं ,

खिदमत हमारी करना औरत की है किस्मत

करना है कुछ उसके लिए ये जानते नहीं !

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जनम-जनम का साथ है पत्नी पति का मांगती

ये पत्नी को दिल में कभी उतारते नहीं ,

चाह रखके बेटों की ये बेटियां हैं मारती

ये बुराई तक माँ के लिए हैं मारते नहीं !

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”शालिनी ”की तड़प का है ना सबूत कोई

अपने किये को ये कभी धिक्कारते नहीं ,

बेटी हो या बहन हो ,ये पत्नी हो या माँ हो

अपने को किसी हाल ये सुधारते नहीं !

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शालिनी कौशिक

[कौशल ]

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