! मेरी अभिव्यक्ति !
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आंसू पीकर मुस्कुराना ,नहीं इंसान के वश में ,
ठोकर खाकर हँसते जाना ,नहीं इंसान के वश में .
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संभलने की कोशिशें लाख ,भले ही हम यहाँ कर लें ,
ज़ख्म की टीस को सहना ,नहीं इंसान के वश में .
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कलेजा हो रहा छलनी ,फरेब देख अपनों के ,
मगर खुलकर ये सब कहना ,नहीं इंसान के वश में .
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हमारे जज़्बातों से खेलना ,फितरत में है जिनकी ,
उन्हीं के जैसे हो जाना ,नहीं इंसान के वश में .
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बहाये जा यूँ ही आंसू ,यही है किस्मत ‘शालिनी ‘
कभी दुःख से निकल पाना ,नहीं इंसान के वश में .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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