! मेरी अभिव्यक्ति !
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चले आज वे महज़ देह छोड़कर ,
नज़र सामने न कभी आयेंगे .
अगर देखें शीश उठाकर सभी ,
गगन में खड़े वे चमक जायेंगे .
शरीरों का साथ भी क्या साथ है ?
है चलती ही रहती मिलन व् जुदाई .
जो मिलते हैं अपनी आत्मा से हमें
न मध्य में आती किसी से विदाई .
ये जन -जन के प्यारे अज़र हैं अमर हैं
हमारे ख्वाबों में रोज़ आया करेंगे .
भले भूल जाएँ हमको हमारे ही अपने
ये सबके दिलों पर छाये रहेंगे .
जो पैदा हुए हैं सभी वे मरेंगे ,
जो आये यहाँ पर सभी चल पड़ेंगे .
है इनके काम का ये जादू सभी पर
ये जिंदा थे ,जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे .
श्री गोपीनाथ मुंडे को भावपूर्ण श्रृद्धांजलि
शालिनी कौशिक
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