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पुरुष रुपी बल्ले पर नारी गेंद बन पड़ी ,

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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आज की सच्चाइयाँ कुबूल कीजिये सभी ,

भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .

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नारी को है नारी से ईर्ष्या डाह द्वेष

नारी रोके नारी की उन्नति राहें सभी ,

अपने से आगे किसी को ये करे नहीं पसंद

बढ़ चले अगर कोई ,सुलगे चिंगारी दबी .

खुद यदि है शादमा रखे खुश सबको तभी

भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .

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पर पुरुष की असलियत इससे भी है भयावह

डर है अपनी जात से जिसमे वासना भरी ,

वहशी बनके कर रहा है पुरुष ही दरिंदगी

कैसे ऐसी नज़र से बचाये अपना घर अभी .

पुरुष ही पुरुष से बचके भागता फिरे,

भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .

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नारी अपनी रंजिशों को खुद से ही संभालती

पुरुष बनता दुश्मनी में इसको ही अपनी छुरी ,

पुरुष बनाके खेल इसकी ज़िंदगी से खेलता

खिलौना बनती नारी खुद ही दासी बन इसकी पड़ी .

पुरुष रुपी बल्ले पर नारी गेंद बन पड़ी ,

भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .

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शालिनी कौशिक

[woman about man]

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