! मेरी अभिव्यक्ति !
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उड़ता है मन
कल्पनाओं के
रोज़ नए लोक में ,
पाता है नित नयी
ऊंचाइयां
तैरकर के सोचता
पाउँगा इच्छित सभी,
पूरी आकांक्षाएं
होंगी मेरी अभी ,
तभी लगे हैं ठोकरें
यथार्थ से जो पाँव में
टुकड़े टुकड़े हो ह्रदय
घिरता जाये शोक में .
………….
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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