! मेरी अभिव्यक्ति !
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अल्फ़ाज़ दिल की बेबसी को कह नहीं सकते ,
आंसू छिपकर आँखों में रह नहीं सकते।
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गिरे हैं दिल पे आकर जब कभी हालात के पत्थर ,
तसल्ली प्यार के सौ बोल भी दे तब नहीं सकते।
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नहीं लायक तो मानेंगें सभी इलज़ाम हम तेरे ,
कभी काबिल तुम्हारे झूठ को यूँ सह नहीं सकते।
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तरक्की रोककर मेरी फतह पर अपनी न खुश हो ,
किसी दरिया को चट्टानें बांध यूँ रख नहीं सकते।
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रहेगी कब तक दुनिया में दबाकर खुद को ”शालिनी ”,
जलजले इस ज़माने में फटे बिन रह नहीं सकते।
शालिनी कौशिक
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