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धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||

! मेरी अभिव्यक्ति !
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धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||


आंसू न किसी के रोक सके धिक्कार तुम्हे है तब मानव |

खुशियाँ न किसी को दे सके धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||

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ये जीवन परोपकार में तुम गर लगा सके तो धन्य है ,

गर स्वार्थ पूर्ति  में लगे रहो धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||

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जब बनते खुशियाँ लोगों की सच्ची खुशियाँ तब पाते हो ,

जब छीनो  चैन  किसी का भी धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||

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न छीनो हक़ किसी का तुम जो जिसका है उसको दे दो ,

जब लूटपाट मचाते  तुम धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||

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जब समझे गैर को तुम अपना तब जग अपना हो जाता है,

करते जब अपने को पराया  धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||

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लायी “शालिनी”धर्मों से  कुछ बाते तुम्हे बताने  को,

न समझ  सके गर अब   भी तुम धिक्कार तुम्हे है तब मानव||

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शालिनी कौशिक

{कौशल }


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