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हुकुम देना है हक़ इनका ,हुकुम सुनना हमारा फ़र्ज़ ,

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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बहाने खुद बनाते हैं,हमें खामोश रखते हैं ,

बहाना बन नहीं पाये ,अकड़कर बात करते हैं .

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हुकुम देना है हक़ इनका ,हुकुम सुनना हमारा फ़र्ज़ ,

हुकुम मनवाने की ताकत ,पैर में साथ रखते हैं .

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मेहरबानी होती इनकी .मिले दो रोटी खाने को ,

मगर बदले में औरत के ,लहू से पेट भरते हैं .

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महज़ इज़ज़त है मर्दों की ,महज़ मर्दों में खुद्दारी ,

साँस तक औरत की अपने ,हाथ में बंद रखते हैं .

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पूछकर पढ़ती-लिखती हैं ,पूछकर आती-जाती हैं ,

इधर ये मर्द बिन पूछे ,इन्हीं पर शासन करते हैं .

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इशारा भी अगर कर दें ,कदम पीछे हटें उसके ,

खिलाफत खुलकर होने पर ,भी अपनी चाल चलते हैं .

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नहीं हम कर सकते हैं कुछ भी ,टूटकर कहती ”शालिनी ”

बनाकर  जज़बाती हमको ,ये हम पर राज़ करते हैं .


..

शालिनी कौशिक

[WOMAN ABOUT MAN]


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