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सरज़मीन नीलाम करा रहे हैं ये

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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सरज़मीन नीलाम करा रहे हैं ये

सरफ़रोश बन दिखा रहे हैं ये ,

सरसब्ज़ मुल्क के बनने को सरबराह

सरगोशी खुले आम किये जा रहे हैं ये .

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मैकश हैं गफलती में जिए जा रहे हैं ये

तसल्ली तमाशाइयों से पा रहे हैं ये ,

अवाम के जज़्बात की मज़हब से नज़दीकी

जरिया सियासी राह का बना रहे हैं ये .

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ईमान में लेकर फरेब आ रहे हैं ये

मज़हब को सियासत में रँगे जा रहे हैं ये ,

वक़्त इंतखाब का अब आ रहा करीब

वोटें बनाने हमको चले आ रहे हैं ये .

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बेइंतहां आज़ादी यहाँ पा रहे हैं ये

इज़हार-ए-ख्यालात किये जा रहे हैं ये ,

ज़मीन अपने पैरों के नीचे खिसक रही

फिकरे मुख़ालिफ़ों पे कैसे जा रहे हैं ये .

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फिरका-परस्त ताकतें उकसा रहे हैं ये

फिरंगी दुश्मनों से मिले जा रहे हैं ये ,

कुर्बानियां जो दे रहे हैं मुल्क की खातिर

उन्हीं को दाग-ए-मुल्क कहे जा रहे हैं ये .

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इम्तिहान-ए-तहम्मुल लिए जा रहे हैं ये

तहज़ीब तार-तार किये जा रहे हैं ये ,

खौफ का जरिया बनी हैं इनकी खिदमतें

मर्दानगी कत्लेआम से दिखा रहे हैं ये .

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मज़रूह ज़म्हूरियत किये जा रहे हैं ये

मखौल मज़हबों का किये जा रहे हैं ये ,

मज़म्मत करे ‘शालिनी ‘अब इनकी खुलेआम

बेख़ौफ़ सबका खून पिए जा रहे हैं ये .

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शब्दार्थ-सरसब्ज़-हरा-भरा ,सरबराह-प्रबंधक ,मैकश-नशे में ,गफलती-भूल में ,इंतखाब-चुनाव ,फिकरे-छलभरी बात ,तहम्मुल-सहनशीलता ,मज़रूह-घायल ,ज़म्हूरियत-लोकतंत्र ,सरगोशी -कानाफूसी-चुगली,

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शालिनी कौशिक

[कौशल ]


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