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लो फिर आ गया

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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लो
फिर आ गया
धोती -कुर्ता पहन
बेंत से कर
ठक-ठक आवाज़
आज फिर
उसका
कोई अपना
पुलिस ने पकड़ा
शायद !
रो रहा है
हाथ जोड़ रहा है
आज़ादी
अपने की
चाहे वह हर घडी
परिवार
जो है बहुत बड़ा
पालनकर्ता उस अपने के
पीछे न जाने वो
क्यूँ है पड़ी ?
दालों में कंकड़ भर करके
चर्बी से घी बना करके
खुद का पेट ही नहीं भरा
वो पाले है परिवार मेरा ,
जग थोड़े ही
पालेगा
घर को मेरे
फिर क्यूँ
परवाह
वो किसी की करे ?
ये कहने वाला
आज यहाँ
रो-रोकर पैर है पकड़ रहा
बरसों से घर के सामने से
बिन दुआ सलाम
था गुज़र रहा
पर आज पड़ा
जब से मतलब
दिन-रात यहाँ बैठे टिककर
कानून से पिंड छुड़ाने को
दीवाली मनायी थी
मिलकर
काम हुआ
फिर हमें भूल गया
और आज
हमारा घर
हमारा चेहरा
उसे
फिर याद आ गया
और
नयी मुसीबत
से बचने
लो फिर आ गया
वो धोती-कुर्ता पहन
बेंत से कर
ठक-ठक आवाज़ .

……

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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