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मीडिया: सर्वव्यापी बने एकाकी नहीं .[CONTEST ]

! मेरी अभिव्यक्ति !
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पूरा उत्तर भारत कड़ाके की ठण्ड की चपेट में ,सर्दी से आज इतने मरे ,आज इतने मरे ,कोलकाता में दोहरे गैंगरेप की शिकार किशोरी की मौत ,घर ,सड़के सभी महिलाओं के लिए असुरक्षित ,गहरी धुंध में वाहनों की टक्कर ,ट्रेन हादसा और भी बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिससे जनजीवन अस्तव्यस्त हो रहा है ,भयाक्रांत हो रहा है किन्तु हमारा मीडिया आजकल सारे देश की जगह मात्र दिल्ली में ही सिमटा हुआ है और दिल्ली में भी केवल नव निर्वाचित ‘आप”की बनी हुई सरकार पर और जैसे कि हमारे लोकतंत्र की वास्तविक प्रधानता मंत्रिपरिषद में निहित है और इसलिए मंत्रिपरिषद का प्रधान प्रधानमंत्री होने के नाते वह देश में सर्वाधिक आकर्षण का गुरुत्व केंद्र होता है वही गुरुत्वाकर्षण आजकल आप के प्रधान अरविन्द जी में समाया है .देश मानो थम गया है कहीं और कुछ नहीं हो रहा जो हो रहा है दिल्ली में हो रहा है ,कोई और कुछ नहीं कर रहा जो कर रहे हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कर रहे हैं .एकाएक दिल्ली में अपराध थम गए वैसे ही जैसे दिल्ली के सामने सारा देश थम गया ,एकाएक मीडिया को बस एक ही काम रह गया ‘आप’ और अरविन्द केजरीवाल ‘के कवरेज का .महंगाई ने घुटने टेक दिए दिल्ली में आप के आगे ,महिलाओं का उत्पीड़न बंद हुआ केजरीवाल के आगे ,अपराध जगत ने आत्म समर्पण कर दिया आप व् अरविन्द के आगे ,क्या वास्तव में ऐसा हुआ है ,अगर हुआ है तो बहुत ख़ुशी की बात है किन्तु हम सभी जानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है और ऐसा सम्भव भी नहीं है अभी ,फिर क्यूँ कभी आप का शपथ ग्रहण ,कभी मेट्रो से आना कभी विश्वास मत ,कभी स्पीकर चयन ,कभी मुख्यमंत्री केजरीवाल का सरकारी बंगला लेना तो कभी छोड़ना ,कभी आप के मंत्रियों का सुरक्षा लेना खबर तो कभी छोड़ना खबर ,कभी लाल बत्ती न लेना खबर तो कभी लेना खबर ही हर वक्त समाचारों में छाये हैं .
मीडिया स्वयंम नहीं देखता कि वह इस लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है और उसके द्वारा ही अपने कर्त्तव्य का सही निर्वहन नहीं हो रहा है वह स्वयं भेदभाव की नीति का अनुसरण कर रहा है और स्वयं उस राह पर चल रहा है जिस पर आज तक देश का विभाजन करने वाली शक्तियां ही नज़र आती थी .राजस्थान ,मणिपुर ,मध्य प्रदेश ,दिल्ली व् छत्तीसगढ़ के चुनाव साथ हुए और इनके परिणाम भी साथ ही आये .दिल्ली के समान ही और जगह भी नव निर्वाचित सरकारों ने कार्यभार सम्भाला और शपथ ग्रहण किया किन्तु उनके शपथ ग्रहण का सीधा प्रसारण तो दूर की बात है समाचारों में भी मात्र ५ मिनट के लगभग ही दिए गए और आप का शपथ ग्रहण तो मीडिया के अनुसार अनोखा कार्य रहा क्योंकि उसके मंत्रीगण तक कैसे कैसे वहाँ पधारे सभी कुछ खोल खोल कर दिखाया गया ,दूरदर्शन ने जगह जगह अपने संवाददाता नियुक्त किये इस पुण्य को पाने के लिए .
नहीं देख रहा है मीडिया कि उसकी यही कार्यप्रणाली सरकार को अपने कर्त्तव्य से विमुख करने में अहम् भूमिका निभाती है क्योंकि जब सरकार को मीडिया अपने साथ दिखायी देता है तब उसके लिए अन्य बातों पर गौर करने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती .आज मीडिया जिस तरह से आप व् अरविन्द की सादगी ,जन हित के लिए समर्पित व्यक्तित्व के नाते महिमा मंडन कर रहा है वह तो भारतीय राजनीति में पहले भी रहा है और अब भी है .आजकल के ऐसे नेता जो सादगी से रहते भी हैं और जनहित में जूट रहते हैं उनमे भाजपा के गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर परिकर ,जो अपनी स्कूटी से कार्यालय जाते हैं और कभी कभी दूसरों से लिफ्ट भी लेकर वहाँ पहुँचते हैं ,ममता बेनर्जी ,सूती साड़ी कंधे पर थैला पैरों में बाटा की चप्पल ,माणिक सरकार जिनकी कुल संपत्ति ही ढाई लाख रुपये है और जो दो कमरों के मकान में रहते हैं और रमन सिंह जिनसे आम आदमी का आज भी डाक्टर मरीज के जैसा सामान्य संबंध है ,भी हैं किन्तु इनके अपने पद पर आसीन होते समय तो मीडिया ने कहीं कोई उत्सुकता नहीं दिखायी कोई अतिरिक्त कवरेज की रौशनी इन पर नहीं डाली फिर जब शीला दीक्षित की सरकार बनी थी तब भी मीडिया ने उनके बारे में कई बड़े बड़े दावे किये थे और फिर समय बीता और मीडिया में उन्हें लेकर उदासीनता की स्थिति बनी वही स्थिति जो सत्ता के सामने हमेशा आती है ‘विरोध ‘वही उनके मामले में हुआ और दामिनी गैंगरेप से जो दिल्ली उबली वह उसके बाद भी अभी तक इस नयी सरकार के बनने तक रोज कहीं न कहीं गैंगरेप की घटनाएं बताकर उबलती रही लेकिन अब नयी सरकार के आते ही एकाएक गैंगरेप बंद हो गए हैं जैसे सब बंद क्योंकि अब केवल सरकार की ही ख़बरें हैं सरकार आप की ,आम आदमी की ,इसलिए सब ओर से चुप्पी और महिमामंडन की अति ,जबकि ये तो मीडिया भी जानता है –
”अति का भला न बोलना ,अति का भला न चुप ,
अति का भला न बरसना ,अति की भली न धूप .”
रोज अपने को मीडिया की सुर्ख़ियों में बनाये रखने की आप व् अरविन्द की कार्यप्रणाली मीडिया को क्यूँ नज़र नहीं आती जबकि ये साफ है कि आप का सरकार बनाने वाला हमारा मीडिया ही है .ऐसे में मीडिया की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है और अगर उसे इस सरकार को पहली सरकारों की तरह भटकने से बचाना है तो उसे इनके इन व्यर्थ के कामों को तरज़ीह ने देकर इनका ध्यान वहाँ की वर्त्तमान समस्याओं की ओर उन्मुख करना होगा तभी मीडिया का राजनीति को स्वच्छ करने के लिए चलाया गया अभियान सफलता की राह का राही कहा जायेगा और ये काम मीडिया को करना ही होगा क्योंकि –
”पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है ,
पर तू ज़रा भी साथ दे तो और बात है ,
चलने को तो एक पांव से भी चल रहे हैं लोग
ये दूसरा भी साथ दे तो और बात है .”

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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