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न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार .-CONTEST

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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आंसू ही उमरे-रफ्ता के होते हैं मददगार,

न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार.

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मिलने पर मसर्रत भले दुःख याद न आये,

आते हैं नयनों से निकल जरखेज़ मददगार.

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बादल ग़मों के छाते हैं इन्सान के मुख पर ,

आकर करें मादूम उन्हें ये निगराँ मददगार.

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अपनों का साथ देने को आरास्ता हर पल,

ले आते आलमे-फरेफ्तगी ये मददगार.

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आंसू की एहसानमंद है तबसे ”शालिनी”

जब से हैं मय्यसर उसे कमज़र्फ मददगार.

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कुछ शब्द-अर्थ:

उमरे-रफ्ता–गुज़रती हुई जिंदगी,

जरखेज़-कीमती,

मादूम-नष्ट-समाप्त,

आलमे-फरेफ्तगी–दीवानगी का आलम.

………..

शालिनी कौशिक

http://shalinikaushik2.blogspot.com


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