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प्रधानमंत्री चयन सांसदों का विशेषाधिकार

! मेरी अभिव्यक्ति !
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भारतीय संविधान के अनुच्छेद ७५[१] में कहा गया है –
*अनुच्छेद ७५[१]-प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा .”
यदि इस अनुच्छेद को सर्वमान्य माना जाये तो प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करती है और राष्ट्रपति की स्थिति संविधान के अनुसार यह है –
-अनुच्छेद ५२ कहता है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा .
-अनुच्छेद ५३ [१] कहता है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह उसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा .
-और अनुच्छेद ७४ कहता है कि [१] राष्ट्रपति को उसके कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करेगा .
परन्तु राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पुनर्विचार करने की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसे पुनर्विचार के पश्चात् दी गयी सलाह के अनुसार कार्य करेगा .
[२] इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जाँच नहीं की जायेगी कि क्या मंत्रियों ने राष्ट्रपति को कोई सलाह दी और दी तो क्या दी .
इस प्रकार संविधान के अनुसार राष्ट्रपति नाममात्र का ही प्रधान है वास्तविक प्रधानता मंत्रिपरिषद में ही निहित है और उसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है जो लोक सभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है और जिसका चयन चुनाव पश्चात् ही किया जा सकता है क्योंकि वास्तविक स्थिति चुनाव पश्चात् ही सबके सामने होती है .ऐसे में किसी भी दल को यह अधिकार नहीं है कि वह बताये कि कौन प्रधानमंत्री होगा जैसा कि भारत के एक प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी ने देश के संविधान को नकारते हुए आगे बढ़कर नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है जबकि भारत में प्रधानमंत्री पद के लिए कोई चुनाव होता ही नहीं है वह तो लोक सभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है और यदि वह राज्य सभा का सदस्य है तो उसके लिए आवश्यक है कि वह लोक सभा के बहुमत का विश्वास प्राप्त करे .
ऐसे में संवैधानिक व्यवस्था को नकारते हुए अपने इरादों को देश पर थोपने का अधिकार किसी भी दल को नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री कौन होगा यह जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का अधिकार है और उन्हें प्रतिनिधित्व देने वाली जनता का अधिकार है और इसे छीनने की यदि किसी भी दल द्वारा कोशिश की जाती है तो इसे संविधान की अवमानना की श्रेणी में रखा जाना चाहिए क्योंकि संविधान ने भारत को ”सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य ”का दर्जा दिया है जो कि यह तभी है जब जनता अपने प्रतिनिधि चुने और प्रतिनिधि अपना नेता और जो स्थिति भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को अपना अगुवा बनाकर प्रस्तुत की है ऐसे में न तो यह लोकतंत्र ही रह सकता है और न ही गणतंत्र ,ऐसे में ये मात्र दलतंत्र ही कहा जा सकता है क्योंकि दल अपनी पसंद जनता पर थोप रहे हैं और एक यह दल ऐसे कुत्सित कार्य कर अन्य दलों को भी इस कार्य के लिए उकसाकर सारी संवैधानिक व्यवस्था को डगमगाने की कार्यवाही कर रहा है ऐसे में संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन करने में अग्रणी रहने वाली भारतीय जनता पार्टी की मान्यता रद्द होनी चाहिए .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

जागरण जंक्शन में ४ जनवरी २०१४ को प्रकाशित

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