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कैसे भी हो इस साल मैं पापा के सपने अवश्य पूर्ण करूंगी ,मम्मी की इच्छाओं के अनुसार बनकर दिखाऊँगी ,पिछले कई सालों से नया साल आने का जैसे ही समय नज़दीक आता जाता ऐसे कितने ही संकल्प मेरे ही क्या लगभग सभी युवाओं द्वारा लिए जाते होंगे किन्तु उनका पूरा होना नियति ,भाग्य के हाथ में है ये देखकर फिर सोचकर परिश्रम वक़्त गुजरते गुजरते कम होता जाता है और धीरे धीरे आटे दाल के भाव में बिक जाता है .
अपना जीवन ,अपने अपनों का जीवन ,अपना समाज ,देश ,विश्व सभी साल भर में ऐसी कई घटनाओं से रु-ब-रु होते हैं कि कई संकल्प मस्तिष्क में आकर अपना स्थान बनाते हैं जैसे हमें अपने जीवन में इस साल कुछ ऐसा कर दिखाना है कि हमारा जीवन दुनिया के लिए प्रेरणा का स्वरुप ग्रहण कर ले ,जैसे हमारे अपने आज तक हमारे लिए इतना कुछ करते आये हैं अब हम कुछ ऐसा कर दिखाएंगे जिससे उनका मान सम्मान चौगुना हो जाये ,जीवन स्तर काफी ऊँचा हो जाये ,जैसे हमें अपने समाज से इस साल भिक्षावृति ,भेदभाव अदि बुराइयों को दूर भगाना है ,अपने देश को विश्व में एक ऐसा स्थान का दर्जा दिलाना है जहाँ महिलाएं अपने पूरे आत्म-सम्मान से रहती हैं ,जहाँ आतंकवाद जैसी बुराइयों का नामोनिशान नहीं ,जहाँ भ्रष्टाचार जैसी बुराई ऐसे दूर भागती है जैसे सूर्या की रौशनी देख अँधेरा आदि ….इस तरह के संकल्प लेकर हम आगे बढ़ते हैं किन्तु नित नयी आती परेशानियां जैसे प्रतियोगी परीक्षा देने गए तो या तो परचा ही इतना कठिन आया कि कि हम उसे सही तरह से हल नहीं कर पाये और या परीक्षा तो बहुत अच्छी तरह दे आये किन्तु सुनने में आ रहा है कि सफल होने के लिए इतने लाख देने होंगे तभी चयन के योग्य होंगे और ऐसे में भ्रष्टाचार को भूल हम या तो पैसे दे देते हैं या पैसे न होने पर तंगी के कारन मन मसोस कर बैठ जाते है ,जैसे किसी महिला के साथ छेड़खानी होती है और करने वाला अपना भाई ,अपना दोस्त अपने धर्म का आदि बातें और फिर थाने में रिपोर्ट लिखने में आने वाली दिक्कत से हम स्वयं के पैरों में बेड़ियां डाल लेते हैं ,जीवन की रोज घटित ये घटनाएं बड़े बड़े संकल्पों को तोड़ देती हैं ऐसे में मन करता है कि न लिया जाये कोई संकल्प क्योंकि लेने से फायदा भी क्या जब वह टूट ही जायेगा किन्तु एक अनदेखी शक्ति जो हमारे अंदर हमेशा विराजमान रहती है और हमें इस ओर प्रेरित करती है और कहती है –
”मुसीबत में भी जीने का बहाना ढूढ़ लेते हैं ,
कड़कती बिजलियों में आशियाना ढूंढ लेते हैं ,
फलसफा सीखना है ज़िंदगी का उन परिंदों से
जो कूड़े में पड़ा गेंहू का दाना ढूंढ लेते हैं .”
और वही गेंहू का दाना बन रहा है इस बार का संकल्प ,जो मैं ले रही हूँ और शायद आप सब भी लें कि ‘हम हर हालत में सत्य का साथ देंगें ”क्योंकि इस दुनिया में सत्य से बड़ी कोई शक्ति नहीं है ,सत्य में ईश्वर का वास होता है और सभी जानते हैं कि सत्य का साथ देने वाले को किसी और की मदद की दरकार नहीं होती ,वह अकेला किसी काम में आगे बढ़ता अवश्य है किन्तु अकेला रहता नहीं क्योंकि उसका साथ देने को काफिला बढ़ता आता है बिलकुल वैसे है जैसे गांधी जी के साथ आया था –
”मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए कारवां बढ़ता गया .”
ज़रूरी नहीं कि हम हर बात के ,हर घटना के सत्य से वाकिफ हों किन्तु हमारी अंतरात्मा हमें वह शक्ति देती है कि हम सत्य को पहचान सकें पर हम ही उसे दबा देते हैं ,यदि हम अपनी अंतरात्मा को न दबाकर सत्य का साथ देने को ही आगे बढ़ें तो निश्चित बात है कि हमारे कदम सत्य की ओर ही बढेंगें क्योंकि आत्मा में परमात्मा का वास होता है और परमात्मा में सत्य का इसलिए एक यही संकल्प ऐसा है जो अविनाशी है और सर्व कल्याणकारक है कि हम सभी सत्य का साथ दें और फिर कबीर दास जी ने भी तो कहा है –
”सांच बराबर तप नहीं ,झूठ बराबर पाप ,
जाके ह्रदय सांच है ,ताके ह्रदय आप .”
शालिनी कौशिक
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