Menu
blogid : 12172 postid : 646197

सियासत-सेवा न रहकर खेल और व्यापार हो गयी .

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
  • 791 Posts
  • 2130 Comments

सियासत आज सिर पर सवार हो गयी ,
सेवा न रहकर खेल और व्यापार हो गयी .
……………………………………………………………..
मगरमच्छ आज हम सबके मसीहा हैं बने फिरते,
मुर्शिद की हाँ में हाँ से ही मोहब्बत हो गयी .
………………………………………………………………
बेबस है अब रिआया फातिहा पढ़ रही है ,
सियासी ईद पर वो शहीद हो गयी .
……………………………………………………………………
फसाद अपने घर में खुद बढ़के कर रहे हैं ,
अवाम इनके हाथों की शमशीर हो गयी .
………………………………………………………………
शह दे रहे गलत की शहद भरी छुरी से ,
शहज़ादा देख शाइस्तगी काफूर हो गयी .
………………………………………………………………….
दायजा बनी दानिश अब इनकी महफ़िलों में ,
मेहनत की रोटी इनकी रखैल हो गयी .
……………………………………………………..
कहते हैं पहरेदारी हम कर रहे वतन की ,
जम्हूरियत जनाज़े में यूँ तब्दील हो गयी .
…………………………………………………….
करते हैं गलेबाजी ,लगाते कहकहे हैं ,
तकलीफ हमारी इन्हें रूह अफ़ज़ा हो गयी .
……………………………………………………..
गवाही दे रही हैं इस मुल्क में हवाएं ,
मौज़ूदगी से इनकी ज़हरीली हो गयी .
…………………………………………………..
गुमराह करें हमको गिर्दाब में ये घेरे ,
इनसे ही गुफ्तगू हमारी मौत हो गयी .
………………………………………………………
”शालिनी”कर रही है गिरदावरी इन्हीं की ,
शिकार बनाना ही जिनकी फितरत हो गयी .
………………………………………………………….
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
शब्दार्थ -रूह अफ़ज़ा-प्राणवर्धक ,मुर्शिद-धूर्त आदमी ,फातिहा -मरने पर फातिहा पढ़ना ,दायजा-दहेज़ ,दानिश-अक्ल,गिरदावरी-घूम घूम कर जाँच करना ,गिर्दाब-भंवर ,गलेबाजी-बढ़-चढ़कर बाते करना .

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply