सियासत आज सिर पर सवार हो गयी , सेवा न रहकर खेल और व्यापार हो गयी . …………………………………………………………….. मगरमच्छ आज हम सबके मसीहा हैं बने फिरते, मुर्शिद की हाँ में हाँ से ही मोहब्बत हो गयी . ……………………………………………………………… बेबस है अब रिआया फातिहा पढ़ रही है , सियासी ईद पर वो शहीद हो गयी . …………………………………………………………………… फसाद अपने घर में खुद बढ़के कर रहे हैं , अवाम इनके हाथों की शमशीर हो गयी . ……………………………………………………………… शह दे रहे गलत की शहद भरी छुरी से , शहज़ादा देख शाइस्तगी काफूर हो गयी . …………………………………………………………………. दायजा बनी दानिश अब इनकी महफ़िलों में , मेहनत की रोटी इनकी रखैल हो गयी . …………………………………………………….. कहते हैं पहरेदारी हम कर रहे वतन की , जम्हूरियत जनाज़े में यूँ तब्दील हो गयी . ……………………………………………………. करते हैं गलेबाजी ,लगाते कहकहे हैं , तकलीफ हमारी इन्हें रूह अफ़ज़ा हो गयी . …………………………………………………….. गवाही दे रही हैं इस मुल्क में हवाएं , मौज़ूदगी से इनकी ज़हरीली हो गयी . ………………………………………………….. गुमराह करें हमको गिर्दाब में ये घेरे , इनसे ही गुफ्तगू हमारी मौत हो गयी . ……………………………………………………… ”शालिनी”कर रही है गिरदावरी इन्हीं की , शिकार बनाना ही जिनकी फितरत हो गयी . …………………………………………………………. शालिनी कौशिक [कौशल ] शब्दार्थ -रूह अफ़ज़ा-प्राणवर्धक ,मुर्शिद-धूर्त आदमी ,फातिहा -मरने पर फातिहा पढ़ना ,दायजा-दहेज़ ,दानिश-अक्ल,गिरदावरी-घूम घूम कर जाँच करना ,गिर्दाब-भंवर ,गलेबाजी-बढ़-चढ़कर बाते करना .
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