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सज संवरके हाथ अपने बांध तब लीजिये ,

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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तस्वीर बनकर सामने जो हाथ बांधे हों खड़े ,
नुमाइंदगी की इनसे उम्मीद क्या कर लीजिये ,
थामने को अब मशाल क्रांति नई लाने को ,
संग इस रहनुमा के सेवक रख लीजिये .
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बढ़ चले यूँ हम अगर मूर्ति के साथ में ,
अपने साथ इसकी भी रखवाली आप कीजिये ,
करना पड़े ये काम भी गर ऐसे हालात में ,
इनको आगे चलने का ,फिर क्यूं मुक़द्दर दीजिये .
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हालात ही ख़राब हैं मुल्क के इन दिनों ,
चाहता है देश अब ख्याल कुछ कीजिये ,
दिल को ज़ख़्मी होने से तो आप नहीं रोक सके ,
कम से कम ज़ख्म पर मरहम रख दीजिये .
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देखकर विवाद को आपसे है आसरा ,
समर्थ बन भाइयों के मिटा भेद दीजिये ,
गांठ जो धागे में है प्रेम के यूँ लग रही ,
अपने हाथ खोलकर उसे भी खोल दीजिये .
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बाँधने से हाथ को न कोई कुछ कर सके ,
जनता और दल को न यूँ निराश कीजिये ,
महज गरजने से नहीं मुश्किलों के हल मिलें ,
देखकर मुखालिफों को अब सुधर लीजिये .
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सामने जो आपके चढ़ाये आस्तीन खड़े ,
मुश्किलों से लड़ने की उनसे सीख लीजिये ,
काम अभी देश में पड़े हैं अनकिये हुए ,
मुंह की जगह हाथ से ही काम अब लीजिये .
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बुराईयाँ मुखालिफों की गिनाना आसान है ,
अपनी खासयितों को खुद की नज़र कीजिये ,
आज के हालात का जिम्मेवार कौन यहाँ ,
अपने गिरेबान में झांक देख लीजिये .
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अहम् भरे भाव लिए जनता के सामने ,
सज संवरके हाथ अपने बांध तब लीजिये ,
झोंक दिया देश को मजहबी जिस आग में ,
उससे निकल पाने का उपाय कर दीजिये .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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