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जिसकी नहीं कदर यहाँ पर ,ऐसी वो बेजान यहाँ है .

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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अबला हमको कहने से ,सबकी बढती शान यहाँ है ,
सफल शख्सियत बने अगर हम ,सबका घटता मान यहाँ है .
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बेटी घर की इज्ज़त होती ,इसलिए रह तू घर में ,
बेटा कहाँ फिरे भटकता ,उसका किसको ध्यान यहाँ है .
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बहन तू मेरी बुरी नज़र से ,तुझको रोज़ बचाऊंगा ,
लड़का होकर क्या क्या करना ,मुझको इसका ज्ञान यहाँ है .
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पराया धन है तू बेटी ,तेरी ससुराल तेरा घर ,
दो दो घर की मालिक को ,मिलता न मकान यहाँ है .
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बेटी वाले को बेटे पर ,खर्चे की फेहरिस्त थमा रहे ,
ऊँची मूंछ के रखने वाले ,बिकते सब इन्सान यहाँ हैं .
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बेटा अपना फिरे आवारा ,बहू लगा दो नौकरी पर ,
इतना सब करके भी नारी ,पाती बस फरमान यहाँ है .
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बीवी की खा रहे कमाई ,अपने शीश को खूब उठाकर ,
हमने ही लगवाई नौकरी ,उसकी न पहचान यहाँ है .
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लुटती अस्मत नारी की जब ,दोष उसी का ढूँढा जाये ,
वहशी और दरिंदों का ,न होता अपमान यहाँ है .
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कुछ रुपयों में सौदा होता ,भरी नगर पंचायत में ,
नारी को लज्जित करने पर ,भी मिलता सम्मान यहाँ है .
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खुदगर्जी से भरे मर्द और बिक रहा समाज है ,
नारी जीवन को क्या जग में ,रहने का स्थान यहाँ है .
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मुताबिक ”शालिनी” के ही ,मुत्तफिक है हरेक नारी ,
जिसकी नहीं कदर यहाँ पर ,ऐसी वो बेजान यहाँ है .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]
शब्दार्थ -मुत्तफिक -सहमत

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