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राजनीतिक सोच :भुनाती दामिनी की मौत

! मेरी अभिव्यक्ति !
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राजनीतिक सोच :भुनाती दामिनी की मौत

”आस -पास ही देख रहा हूँ मिट्टी  का व्यापार ,

चुटकी भर मिट्टी की कीमत जहाँ करोड़ हज़ार

और सोचता हूँ आगे तो होता हूँ हैरान ,

बिका हुआ है  मिट्टी के ही हाथों इंसान .”

कविवर गोपाल दास ”नीरज ”की ये पंक्तियाँ आज एकाएक याद आ गयी जैसे ही समाचार पत्रों में ये समाचार आँखों के सामने आया ”कि दामिनी के परिवार को मिलेगा दिल्ली में फ्लैट ”समाचार अपने शीर्षक में ही समेटे था आज के राजनीतिक दलों की सोच को जो इंसानी जज्बातों की कीमत लगा रही है .

दामिनी के साथ १६ दिसंबर २०१२ को जो दरिंदगी हुई उसके बाद भड़के जनाक्रोश ने सत्तारूढ़ दल  की नींद तोड़ी और सरकार को इस सम्बन्ध में कठोर कदम उठाने को धकेला[जिस तरह से सो सो कर सरकारी  मशीनरी ने इस दरिंदगी को ध्यान में रख काम किया उसके लिए धकेला शब्द ही इस्तेमाल किया जायेगा क्योंकि जो इच्छा शक्ति और अपने कर्तव्य के लिए सरकारी मशीनरी के सही कदम थे वे कहीं पूर्व में उठते नहीं दिखाई दिए  थे ]इस दरिंदगी का एक प्रमुख कारण प्रशासनिक विफलता थी जो अगर न होती तो ऐसी दुर्दांत घटना को रोका  जा सकता था और जिस कदर इसके खिलाफ जनांदोलन हुए उससे ये तो साफ हो गया कि वर्तमान में सत्तारूढ़ सरकारों  पर इस दुर्दांत घटना का प्रभाव अवश्य पड़ेगा और फलस्वरूप आरम्भ हुआ वह दौर जो चुनाव २०१४ को देखते हुए कुछ अधिक तत्परता से उठाये जा रहे हैं .कभी रेल ,कभी अस्पताल दामिनी के नाम से संचालित किये जाने की बातें हो रही हैं तो कभी लाखों रुपयों से उसके परिवार की आर्थिक सहायता की जा रही है फिर अभी एक नया प्रस्ताव और सामने आ गया है जिसने दामिनी की पीड़ा को पैसे से दबाने के संकेत दिए हैं और वह है ”दामिनी के परिवार को द्वारिका में फ्लैट ”

इन सभी प्रस्तावों पर यदि हम गौर करें तो निम्न प्रश्न मस्तिषक में उपजते हैं –

१-क्या दामिनी का परिवार किसी दंगे का शिकार हुआ है ?

२-क्या ये कथित कल्पित दंगे उनका मकान विनिष्ट कर चुके हैं?

३-क्या दामिनी अपने परिवार की एकमात्र कमाऊ सदस्य थी ?

क्या इनमे से एक भी वजह हमारे राजनीतिक दल यहाँ पाते  हैं जो दामिनी के परिवार की ऐसी मदद कर उन्हें भ्रमित करना चाह रहे हैं .आज चुनावों की घडी समीप है और हमारे राजनीतिक दल ऐसे मुद्दों की खोज में रहते हैं जिसमे वे आम जनता की भावनाओं को भुना सकें और जिस तरह से दामिनी के साथ हुई दरिंदगी के खिलाफ पूरा देश उठ खड़ा हुआ उसे देखते हुए ये मुद्दा आज की ”टॉप लिस्ट ”में है .

दामिनी के साथ हुई दरिंदगी पर देश का खड़ा होना एक तो उसके लिए न्याय की मांग करने के लिए और दूसरे  भविष्य में किसी अन्य को दामिनी न बनने देने के लिए था .जस्टिस जे.एस.वर्मा की रिपोर्ट के मद्देनज़र सरकार इस दिशा में कुछ सक्रिय हुई है किन्तु उसका प्रशासनिक अमला क्या कर रहा है क्या उस और भी कोई कड़ाई सरकारी मशीनरी ने दिखाई है शायद नहीं और इसकी ज़रुरत भी नहीं समझी गयी जबकि अगर लूट के शिकार व्यापारी की रिपोर्ट लिखी जाती और उस पर त्वरित कार्यवाही की जाती तो ये घटना होती ही नहीं ऐसे में उस मशीनरी के उस सूत्र वाक्य की विश्वसनीयता भी खो जाती है जो कहती है कि ”दिल्ली पुलिस आपके साथ ”कानून केवल बनाने से कुछ नहीं होता उसे लागू करने के लिए भी प्रतिबद्धता होनी चाहिए और ये देखना कानून बनाने वाली व् उसे लागू करने वाली कार्यपालिका का काम है .जो पूरी तरह से सत्तारूढ़ दल की ही होती है इसलिए उसकी जिम्मेदारी इस दिशा में कुछ ज्यादा बन जाती है और जब ये जिम्मेदारी सही तरह से निर्वाह नहीं की जाती तो उथल-पुथल मचना स्वाभाविक है .ऐसे में दामिनी के परिवार को जिस तरह की सहायता  देकर उन्हें और उनके हमदर्द भारतवासियों का ध्यान भटकाने  का प्रयास सत्तारूढ़ दल व् अन्य दलों द्वारा किये जा रहे हैं वे गैर ज़रूरी हैं ज़रूरी केवल दामिनी को न्याय व् आगे से ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकना है .

ये लुभावने प्रयास केवल एक रूप में ही स्वीकार किये जा सकते हैं कि सत्तारूढ़ दल अपने भविष्य को लेकर आशंकित है और ये आशंका सही भी कही जा सकती है क्योंकि ये सर्वदा सत्य है कि जब भी अन्याय -अत्याचार चरम पर पहुँच जाते हैं तो उनका अंत निश्चित  है .कविवर गोपाल दास ”नीरज”जी के ही शब्दों में मैं अपनी लेखनी को विराम दूँगी और अपने राजनीतिक दलों को चेतावनी भी –

”वक़्त को जिसने नहीं समझा उसे मिटना पड़ा है ,

बच गया फूल से तो तलवार से कटना पड़ा है ,

क्यों न कितनी ही बड़ी हो ,क्यों न कितनी ही कठिन हो ,
हर नदी की राह से चट्टान को हटना पड़ा है ,
उस सुबह से संधि कर लो ,
हर किरण की मांग भर लो ,
है जगा इंसान तो मौसम बदलकर ही रहेगा ,
जल गया है दीप तो अंधियार ढलकर ही रहेगा .”
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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